
कुर्बानी के गोश्त का मजा ही कुछ और होता है, रोज एक-एक बोटी बांटकर गोश्त खाने वाले गरीब कुनबे के लिये ईद का दिन ऐसा होता है जब माँ गिनकर नहीं– मरजी जितनी बोटियां खिलाती है, पर आज तो…। अब तो माँ का सब्र भी जवाब देने लगा। “या अल्लाह आज ईद के दिन भी मेरे बच्चे कुर्बानी के गोश्त से महरुम रहेंगे। अपने फटे दामन से आंखो की नमी पोंछते हुये सोच रही माँ के इस सवाल का जवाब आपसे चाहिये।
समाज के कुछ बिलकुल बेजरुरी रीत रिवाजो के चलते कितने ही गरीब बच्चे कुरबानी के गोश्त से महरूम रह जाते है, कितनी माँओ की पलके आंसूओं से भीग जाती हैं। हम क्या करते है, जिनके यहां कुरबानी होती है उन्ही रिश्तेदारों, दोस्तो और जाननेवालों के वहां पहेले गोश्त भेज देते है और वह भी यही गलती दोहराते हैं। इस दुनियांवी अच्छे लगन वाले व्यवहार की भूख में कितने ही जरूरतमंद खानदान इस ईद के मुबारक दिन भी भूखे रह जाते हैं और इनके हिस्से का गोश्त जिनको जरुरी नहीं ऐसे लोगो तक पहुच जाता हैं।
इस इद उज जुहा के मुबारक मौके पर एक पक्का इरादा करके अपने सारे पहचान वालो को पहले इत्तला कर दे के “हमारे घर कुरबानी होने वाली है– अल्लाह के वास्ते हमे गोश्त मत भेजिये, हमे जरा भी बुरा नहीं लगेगा। हमारी दोस्ती -रिश्तेदारी मे कोई फर्क नहीं आयेगा, लेकिन आपके घर के आसपास ऐसा खानदान हो जो हालात के मारे कुरबानी ना कर सका हो तो, उनके घर पहले कुरबानी का गोश्त पहोचाना, जितना ज्यादा हो सके उतना। ये अमल करना कोई मुश्किल नहीं, लेकिन यह अमल ऐसा है जिससे जिस की राहों मे ये कुरबानी दी है, वह राजी हो जायेगा। कोशिश_जरुर_करना।