भोपाल। पदोन्न्ति में आरक्षण मामले की सुनवाई की तारीख नजदीक आते ही एक बार फिर चर्चाओं को दौर शुरू हो गया है। मंत्रालय स्टाफ में पदस्थ वरिष्ठ अफसरों के वर्गवार आंकड़े हाल ही में सामने आए हैं। इनके मुताबिक मंत्रालय में उप सचिव के पद पर अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को 87.5 फीसदी प्रतिनिधित्व मिला है। ये रिपोर्ट एक अप्रैल 2017 की स्थिति में सामान्य प्रशासन विभाग ने तैयार कराई है, जो सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई है। आरक्षित और सामान्य, पिछड़ा वर्ग में नौकरी में संविधान के हिसाब से प्रतिनिधित्व की लड़ाई चल रही है। एससी-एसटी वर्ग के नेताओं का कहना है कि उन्हें नियमों के तहत प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है।
जबकि सरकार के आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं। यदि अकेले मंत्रालय की स्थिति ही देखें तो मंत्रालय सेवा में अपर सचिव पद पर एक अधिकारी पदस्थ है और वह एससी वर्ग से है। जबकि उप सचिव पद पर आठ अफसर काबिज हैं। इनमें अनुसूचित जाति के तीन और अनुसूचित जनजाति के चार शामिल हैं। एक सामान्य वर्ग से भी है। इस तरह एससी-एसटी का इस पद पर 87.5 फीसदी प्रतिनिधित्व बनता है।
वहीं अपर सचिव पद पर 41 अफसर कार्यरत हैं। इनमें से 11 अनुसूचित जाति और 23 अनुसूचित जनजाति से आते हैं। सात सामान्य वर्ग के अधिकारी भी हैं। इस प्रकार आरक्षित वर्ग को इस पद पर 82.92 फीसदी प्रतिनिधित्व मिल रहा है।
अधिकारियों की कमी, बाहर से बुलाए जा रहे
पदोन्न्ति में आरक्षण का कानून अपास्य (खारिज) होने के बाद से मंत्रालय में बुरे हालात हैं। अधिकारी एवं कर्मचारी लगातार रिटायर हो रहे हैं, जो बचे हैं उन पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। ऐसे में बाहरी (संचालनालय या विभाग से) कर्मचारियों को बुलाकर काम कराया जा रहा है। जबकि मंत्रालय के नियम अनुसार बाहरी कर्मचारियों को यहां नहीं रखा जा सकता है। स्कूल शिक्षा विभाग सहित कुछ और विभाग ऐसे हैं, जिनमें उप सचिव स्तर के अफसर मंत्रालय सेवा के न होकर विभाग के हैं।
इसलिए नहीं रखे जाते विभाग के कर्मचारी
मंत्रालय में विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को नहीं रखने की मुख्य वजह काम में पारदर्शिता लाना और पक्षपात को रोकना है। इस नियम के पीछे सोच रही है कि विभाग का कर्मचारी यहां बैठेगा तो प्रदेशभर से आने वाले प्रकरणों में अपने लोगों को बचाने की कोशिश करेगा। वहीं यह भी सोच रही है कि अपने लोगों को लाभ भी दिया जा सकता है।