राजीव गाँधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय और डॉ शर्मा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। डॉ  प्रीतम बाबु शर्मा, हाँ ! वही डॉ पीबी शर्मा, विदिशा वाले विश्वविद्यालयों के राष्ट्रीय सन्गठन के अध्यक्ष चुने गये हैं। इस खबर को सुनने के साथ राजीव गाँधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल उसकी स्थापना मे डॉ शर्मा का योगदान और हाल में उसके नये कुलपति के चयन के लिए हुई मशक्कत याद आई। वह घटनाक्रम भी याद आया जब विदिशा में जन्मे इस राष्ट्रीय सितारे को सिरोंज के एक अन्य शर्मा के कारण प्रदेश छोड़ना पड़ा था। उसके बाद याद आई वो भ्राताजोड़ी जो व्यापम और राजीव गाँधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय में कायम हुई, और इन संस्थानों का हश्र क्या हुआ जग जाहिर है।

डॉ शर्मा जिस जगह पहुंचे हैं, उसकी डगर आसान नहीं है। पूरे देश में विश्वविद्यालयों का एक सन्गठन और उसका अध्यक्ष पद, विद्व्त्ता के अलावा और किसी और जुगाड़ से नहीं मिल सकता। प्रदेश के लिए गौरव की बात है और डॉ शर्मा बधाई के पात्र। इंजीनिरिंग के साथ हिंदी के भी बड़े विद्वान् हैं, डॉ शर्मा।

अब खबर ! राजीव गाँधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय को जैसे-तैसे नये कुलपति मिल ही गये। डॉ पीयूष त्रिवेदी के जाने के बाद से यह पद खाली था। डॉ त्रिवेदी के आने की कहानी और जाने की कहानी रोचक है, पर उससे ज्यादा रोचक है नये कुलपति का चयन। इस पद के लिए विज्ञापन के साथ जोड़-तोड़ का जो सिलसिला चला, अभी भी थमा नही है। भाजपा और उसे शिक्षा की नीति और मार्गदर्शन देने वाले संघ में सवाल-जवाब का दौर जारी है।

इस पद के लिए चयन समितियां बनी, बिगड़ी फिर बनी जब बात बनती नहीं दिखी तो हर मर्ज की दवा आईएएस अधिकारी द्वारा भी संचालन हुआ। पहले गैर तकनीकी व्यक्ति कुलपति न हो, जैसा मुद्दा उठाया गया और यह याद दिलाने पर कि पीयूष जी भी गैर तकनीकी व्यक्ति थे तो अध्यापन के वर्ष को मुद्दा बना कर रोक-टोक हुई। यह भी नहीं चला तो चयन समिति ने यह स्वीकार कर वो भारी दवाब में है। भारी मन से निर्णय कर दिया। कहते हैं की प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के एक महामंत्री भारी पड़े और बाज़ी उनके पक्ष में गई। 

इस खबर को डॉ शर्मा की खबर के साथ जोड़ने का मतलब ! जी हाँ है। प्रदेश के शिक्षा संस्थानों की झांकी दिखाना। ऐसे ही एक मंत्री के दबाव में डॉ शर्मा गये थे, अब क्या होगा राम जाने। राजीव गाँधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय हो या अन्य कोई विश्वविद्यालय उसे राजनीतिक धींगामस्ती का केंद्र नही बनाना चाहिए। इसके लिए प्रदेश के निजी विश्वविद्यालय की काफी हैं और उन पर नियन्त्रण एक नख दंत विहीन आयोग करता हैं। अब भी भोपाल और इंदौर विश्वविद्यालय के लिए कुलपति का चुनाव होना है। चयन समिति दवाब में न हो, शिक्षा सही दिशा को प्राप्त हो और कम से कम प्रदेश का नाम देश के उत्कृष्ट विश्वविद्यालय की सूची में कहीं तो जुड़ जाये। दबाव से बने कुलपति, दबाव में रहकर, दबाव सहकर, दबाव के लिए ही काम करते हैं। जो शिक्षा के लिए काम करते हैं, उन्हें दबाव के कारण प्रदेश छोड़ना पड़ता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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