बालाघाट से देश भर में सप्लाई हो रहा है नकली कालीमूंछ और चिन्नौर का चावल

आनंद ताम्रकार/बालाघाट। मध्यप्रदेश में चिन्नौर प्रजाति की धान बालाघाट जिले में उत्पादित की जाती है। इस प्रजाति की धान से बनाया गया चावल अपनी विशेष खुशबु के लिये पहचाना जाता है। बुजुर्ग बताते है जिस घर में इस प्रजाति का चावल पकाया जाता था उसकी खुशबु का एहसास आसपास एवं दूर तक होता था लेकिन अब यह बात कहानी तक सीमित रह गई है। बालाघाट जिले में इस प्रजाति के नाम पर पतले किस्म के चावल पर कृत्रिम सुंगध डालकर राईस मिलर्स नकली चिन्नौर का चावल विभिन्न नामों से बेच रहे है।

कृत्रिम सुंगध डालने के लिये प्राप्रेलान ग्लायकाल नामक रासायनिक तरल पदार्थ को इस्तेमाल कर रहे है जो मानव स्वस्थ्य के लिये धातक बताया गया है इसके दुष्प्रभाव से मानव शरीर में त्वचा पर दुष्प्रभाव और केंसर जैसी भयानक बीमारी हो जाती है ऐसा रसायन विशेषज्ञों का अभिमत है।
चिन्नौर ही नही सुंगधित कालीमूंछ प्रजाति की धान जिसकी पैदावार ग्वालियर तथा रायपुर में की जाती है उसके नाम का चावल भी नकली सुंगध बनाकर धडल्ले से बेचा जा रहा है और उपभोक्ताओं का ठगा जा रहा है।

इस विसंगति के विरूद्ध जिला प्रशासन जनसुनवाई के माध्यम से शिकायत दिनांक 10/5/2016 से वरिष्ट पत्रकार आंनद ताम्रकार द्वारा की गई थी लेकिन जांच के नाम जांच अधिकारी राईस मिलर्स से नजराना लेकर शिकायत की लीपापोती में लगे है।

कलेक्टर ने शिकायत की जांच के लिये तीन सदस्यीया जांच दल बनाया था लेकिन लम्बा अरसा गुजर जाने के बाद भी आज तक शिकायत की जांच का निष्कर्ष प्राप्त नही हुआ। यह उल्लेखनीय है कि धान और उससे बनाया गया चावल प्राकृतिक उत्पाद है उसमें किसी भी से रासायनिक पदार्थ का इस्तेमाल कर कृत्रिम सुंगध बनाकर बेचना खादय सुरक्षा एवं गुणवत्ता नियंत्रण अधिनियम में निहित प्रावधानों के अनुसार अपराध की श्रेणी में आता है।

इस संबंध में अखबारों और इलेक्ट्रानिक मिडिया, न्यूज पोर्टल के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर तक समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित किये गये लेकिन आम आदमी स्वस्थ्य के साथ इस तरह खिलवाड किये जाने की गतिविधियों पर कोई कार्यवाही ना होना चर्चा का विषय है। सामान्यता यह देखा जा रहा है कि प्रशासन की सक्रियता तब दिखाई देती है जब कोई आदमी किसी घटना का शिकार हो जाये यह उसकी जान चली जाये।नकली सुंगधित चावल की मध्यप्रदेश सहित महाराष्ट्र, छत्तीसगढ, गुजरात और अन्य प्रदेशों में रोजाना ट्रकों से भेजा जा रहा है लेकिन प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई ना किया जाना चिंता का विषय है।

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