मोदी सरकार ने कर्मचारियों के भत्ते नही घटाए, आयोग के सुझाव फाइल में बंद

ए के भट्टाचार्य@दिल्ली डायरी। करीब तीन सप्ताह पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने 34 लाख कर्मचारियों और सैन्यबलों के 14 लाख कर्मचारियों को मिलने वाले विभिन्न भत्तों को संशोधित करने का आदेश जारी किया। 1 जुलाई, 2017 से लागू नए भत्तों से सरकार पर सालाना 30,748 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पडऩे का अनुमान है। केंद्रीय कर्मचारियों के भत्तों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों की समीक्षा के बाद संशोधित किया गया है।

सवाल यह है कि भत्तों के संबंध में दिए गए वेतन आयोग के मौलिक सुझावों में क्या बदलाव किए गए हैं? वेतन आयोग ने कर्मचारियों को मिल रहे 197 तरह के भत्तों में से 53 को खत्म करने और 37 भत्तों को अन्य भत्तों में समाहित करने की अनुशंसा की थी। आयोग चाहता था कि एक ही झटके में सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले भत्तों में 45 फीसदी की कमी करते हुए उसे 107 की संख्या पर ला दिया जाए।

इन सुझावों की समीक्षा के बाद मोदी सरकार ने क्या कदम उठाए? सरकार को लगा कि आयोग ने जिन 53 भत्तों को पूरी तरह खत्म करने का जो सुझाव दिया है उनमें से 12 को जारी रखा जाना चाहिए। इसके अलावा जिन 37 भत्तों को दूसरे भत्तों में मिलाने को कहा गया था उनमें से तीन भत्तों का अलग वजूद बनाए रखने का फैसला लिया गया। इसके अलावा आयोग ने विभिन्न भत्तों में जितनी बढ़ोतरी की सिफारिश की थी उसे भी सरकार ने बढ़ा दिया। 

आवासीय भत्ते के संदर्भ में वेतन आयोग ने मामूली कटौती का सुझाव दिया था लेकिन केंद्र सरकार ने उसे मौजूदा स्तर पर ही बरकरार रखने का फैसला किया है। खास तौर पर वेतन ढांचे में निचले स्तर के करीब 7.50 लाख कर्मचारियों का आवासीय भत्ता कम नहीं करने की बात कही गई है। आवासीय भत्ते की दर में बढ़ोतरी के लिए सरकार ने महंगाई भत्ते में सतर्कता बिंदुओं को भी घटा दिया है।

भत्तों पर दिए गए सुझावों से भी अधिक बढ़ोतरी करने के सरकारी रवैये से अपने 48 लाख कर्मचारियों की नजर में उसकी छवि एक आदर्श नियोक्ता के रूप में बनने की संभावना है। लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि 41 भत्ते खत्म करने और 34 भत्तों को अन्य भत्तों में मिलाने पर सहमति जताकर मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना में अधिक निर्णयपरकता दिखाई है। अतीत में सरकारों ने वेतन आयोग की तरफ से भत्तों के बारे में दी गई ऐसी ही अनुशंसाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

इसके बावजूद यह सवाल खड़ा होना प्रासंगिक होगा कि वेतन आयोग की सिफारिशों के बावजूद सरकार ने आखिर उन 12 भत्तों को खत्म क्यों नहीं किया? इन भत्तों पर एक नजर डालने से कई मुश्किल सवाल खड़े हो सकते हैं। जैसे कि वेतन आयोग ने यह कहा था कि तकनीकी विकास होने और बैंकिंग सेवाओं के प्रसार से अब नकदी प्रबंधन भत्ता और ट्रेजरी भत्ता अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं लिहाजा उन्हें खत्म कर देना चाहिए। आयोग ने वेतन का भुगतान बैंकों के जरिये करने का भी सुझाव दिया था। इसके अलावा मंत्रालयों को नकदी लेनदेन खत्म करने की दिशा में आगे बढऩे का सुझाव दिया गया था लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार ने आयोग की इस दलील को परे रखते हुए दोनों ही भत्ते कायम रखे हैं। इससे नकदी-रहित लेनदेन को बढ़ावा देने के सरकार का अपना ही अभियान महज जुबानी जमा-खर्च लग रहा है।

इसी तरह सरकार ने नर्सों को दिया जाने वाला ऑपरेशन थियेटर भत्ता और जोखिम भत्ता भी बरकरार रखा है जबकि आयोग ने इन्हें खत्म करने की बात कही थी। आयोग ने कहा था कि इन भत्तों के मद में बहुत कम राशि दी जाती है और नर्सों के कुल वेतन में बढ़ोतरी के बाद अब इनकी कोई जरूरत नहीं रह गई है। इसी तरह वेतन आयोग ने अंतरिक्ष विभाग और इसरो कर्मचारियों को दिए जाने वाले प्रक्षेपण अभियान भत्ते और अंतरिक्ष तकनीक भत्ते को खत्म करने का जो सुझाव दिया था, उस पर भी सरकार का यही रवैया रहा है। यह भी साफ नहीं है कि कुछ रेलवे कर्मचारियों को मिलने वाले ब्रेकडाउन भत्ते और कोयला इंजन पायलट भत्ते को भी खत्म नहीं किया गया है।

यह भी समझ से बाहर है कि साइकिल भत्ता खत्म करने संबंधी आयोग के सुझाव को सरकार ने आखिर क्यों नहीं स्वीकार किया? आयोग ने कहा था कि अब साइकिल भत्ता देने का कोई मतलब नहीं रह गया है और इस भत्ते को बनाए रखने या उसे बढ़ाने की कोई भी मांग उसके सामने नहीं आई है। लेकिन सरकार ने साइकिल भत्ते को न सिर्फ बनाए रखा है बल्कि उसे दोगुना करते हुए 180 रुपये प्रति माह कर दिया है। इस भत्ते से रेलवे और डाक विभाग के करीब 22,200 कर्मचारी लाभान्वित होंगे। क्या सरकार इस भत्ते को बनाए रखने के बजाय इन कर्मचारियों को किसी अन्य तरीके से फायदा पहुंचाने का तरीका नहीं निकाल सकती थी? इस भत्ते पर निगरानी रख पाना भी खासा मुश्किल है।

सैन्य अधिकारियों के प्रति सरकार के दिल में नरमी साफ झलकती है। सरकार ने शांतिपूर्ण इलाकों में तैनात सैन्य अधिकारियों को राशन धन भत्ता देना जारी रखने का फैसला किया है जबकि वेतन आयोग ने इसे खत्म करने का सुझाव दिया था। हालांकि सरकार ने शांतिपूर्ण इलाकों में तैनात अफसरों को मिलने वाली मुफ्त राशन आपूर्ति बंद करने का सुझाव मान लिया है। सरकार ने सैन्य कर्मचारियों को मिलने वाले कफन भत्ते को वापस लेने की अनुशंसा को भी नकार दिया है। इस भत्ते को किसी और नाम से बरकरार रखा गया है। वेतन आयोग की सिफारिशों के बावजूद इन भत्तों को बरकरार रखने का फैसला सरकार ने वरिष्ठ नौकरशाहों की दो समितियों की समीक्षा के आधार पर किया है। वेतन आयोग की सिफारिशों के बारे में निर्णायक मत रखने का अधिकार लोक सेवकों को मिलना क्या हितों का टकराव नहीं माना जाएगा? या फिर एक नई समीक्षा प्रणाली अपनाने का समय आ गया है?
श्री ए के भट्टाचार्य का कॉलम 'दिल्ली डायरी' बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित होता है। 

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