20 साल पुरानी दुश्मनी: दिग्विजय सिंह ने सत्यव्रत को जमीन दिखाई

भोपाल। करीब 20 साल पहले कांग्रेस के विधायक सत्यव्रत चतुर्वेदी ने दिग्विजय सिह के खिलाफ इस्तीफा दे दिया था। तब से अब तक लगातार दिग्विजय सिंह को जब मौका मिलता है वो सत्यव्रत चतुर्वेदी के पर कतर देते हैं। इस बार चतुर्वेदी को कांग्रेस उपराष्ट्रपति चुनाव के ठीक पहले चीफ व्हिप के पद से हटा दिया गया। फैसला राहुल गांधी ने किया है लेकिन कहा जा रहा है कि इस फैसले के पीछे दिग्विजय सिंह का चतुर दिमाग है। चतुर्वेदी इन दिनों राज्यसभा सांसद हैं। 

कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह अपने विरोधियों को धूल चटाने में माहिर माने जाते हैं। कहते हैं कि राजनीति में वो अपने दुश्मनों को कभी नहीं भूलते और नुक्सान पहुंचाने वालों को माफ भी नहीं करते। कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व. माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच का तनाव सभी जानते हैं। दिग्विजय सिंह संगठन के हर मंच पर उनके साथ रहे परंतु जब जब अवसर हाथ आया उन्होंने स्व. माधवराव सिंधिया को नुक्सान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कहते हैं कि ग्वालियर का एतिहासिक मेला सिर्फ इसलिए बर्बाद कर दिया गया क्योंकि उससे स्व. माधवराव सिंधिया का नाम जुड़ा था। 

सत्यव्रत चतुर्वेदी से भी दिग्विजय सिंह का रिश्ता कुछ इसी तरह का है। दिग्विजय सिंह जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, पूरी कांग्रेस पर उनका सीधा नियंत्रण था। उस समय चतुर्वेदी ने दिग्विजय सिंह पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था। चतुर्वेदी उस समय विधायक हुआ करते थे। वक्त के साथ उनका कद बढ़ता गया लेकिन दिग्विजय सिंह भी लगातार अपनी चालें चलते ही रहे। 

एक और एंगल है चतुर्वेदी के खिलाफ 
हालांकि एक पक्ष यह भी मान रहा है कि खजुराहो से जुड़े मध्यप्रदेश के कद्दावर कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी को हटाए जाने का मुख्य कारण उनका निजि व्यवहार और राज्यसभा सदस्यों से संवाद नहीं होना प्रमुख रहा है। इसकी शिकायतें लगातार 10 जनपथ तक पहुंच रही थी। कांग्रेस हाईकमान द्वारा चतुर्वेदी को हटाकर असम के भूमनेश्वर कलीता को नए चीफ का दायित्व सौंपा है। चर्चा है कि पहले यह दायित्व दिग्विजय सिंह को सौंपा जाना था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था।

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