किसानों को बिजली पानी देने 13 साल पहले शहीद हो गया था मप्र का एक शहर

भोपाल। मध्यप्रदेश में निमाण मालवा के किसानों को बिजली और पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए एक शहर 13 साल पहले हंसते हंसते शहीद हो गया था परंतु उसके निवासियों को सरकारी मुआवजा आज तक नहीं मिला है। जी हां, बात हो रही है हरसूद की। खंडवा जिले के इस शहर और आसपास के 250 गांवों को एशिया का सबसे बड़े बांध इंदिरा सागर डेम बनाने के नाम पर कुर्बान कर दिया गया था लेकिन आज भी यहां के बाशिंदे अपना हक पाने के लिए तरस रहे हैं। सरकार शहीदों की चिताओं पर हर बरस मेले लगाती है, लेकिन इस शहर की समाधि पर 13 सालों में आज तक कोई मेला नहीं लगाया गया। सरकार ने कुर्बानी देने वालों को कभी याद नहीं किया। 

हरसूद एक ऐसा शहर जिसकी आज से तेरह साल पहले 2004 में मौत हो गई लेकिन हरसूद और आसपास के 250 गांव के करीब सवा लाख लोगों ने जो त्याग किया उसका परिणाम इन्हें आज तक नहीं मिला। हरसूद के विस्थापितों ने देश को पर्याप्त बिजली दिलाने के लिए अपनी जमीन, घर और कारोबार कुर्बान कर दिए। हरसूद में करीब 5600 परिवारों का विस्थापन हुआ लेकिन जब नया शहर छनेरा बसाया गया, तब इसमें हजार लोग भी बमुश्किल बस पाए। 

सभी को रोजी-रोटी के लिए अपना पैतृक स्थान छोड़ अन्य स्थानों पर रोजगार की व्यवस्था करनी पड़ी। लोगों का आरोप है की कईयों को कम मुआवजा मिलने के कारण कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। कुर्बानी देने वालों को इतने वर्षों बाद एक दर्द यह भी है कि इसी इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर पर हनुवंतिया टापू बसाया गया है। यहां करोड़ों रुपए खर्च कर जल महोत्सव मनाया जाता है लेकिन उन्हें आज तक कोई सुविधा नसीब नहीं हुई है।

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