
जबकि भारतीय संविधान के अनुसार 50% से ज्यादा आरक्षण हो ही नहीं सकता और संविधान में किसी भी अनुच्छेद में ओबीसी को पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान नहीं किया जा सकता तो यह भ्रम फैलाने की क्या जरूरत है केवल अपना स्वार्थ और कुछ नहीं।
दूसरी बात
जब नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान किया गया था तब एससी-एसटी उनकी आबादी का शत प्रतिशत के मान से 36 % देने के बाद मे 50% की सीमा के अंतर्गत 14% आरक्षण OBC को दिया गया। जबकि OBC की जनसंख्या इससे कहीं ज्यादा है इसलिए शेष बचे 50% पद जो सीधी नियुक्तियों में केवल सामान्य एवं ओबीसी के होने चाहिए थे एवं यही तय किया जा रहा था कि शेष बचे 50% पदों को सामान्य एवं OBC के नाम से रखा जाएगा किंतु एससी-एसटी के रहनुमाओं और नियम बनाने वालों ने बड़ी चालाकी से इन शेष 50% पदों को अनारक्षित कर दिया। जिसमें यदि कोई SC ST का उम्मीदवार सामान्य के बराबर मेरिट में अंक लेकर आता है तो वह सामान्य की सीट में घुस जाता है। यहां भी सामान्य और ओबीसी के साथ बेईमानी की गई।
तीसरी बात
नियुक्तियों में आरक्षण की बात है वहां भी ओबीसी में क्रीमी लेयर का प्रावधान कर दिया गया जबकि एससी-एसटी में क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं किया। मेरा यह कहना है कि OBC के भाई इनकी बेईमानी भरी बातों में ना आए एवं पदोन्नति में आरक्षण का खुल कर विरोध करें। जहां तक गया एवं एससी-एसटी के कुछ संपन्न लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी आरक्षण एवं पदोन्नति में आरक्षण की मलाई चाट रहे हैं। 1-1 परिवार में 4-4/5-5 लोग शासकीय सेवाओं में हैं। क्या इनका यह दायित्व नहीं बनता है कि एक परिवार में एक ही व्यक्ति आरक्षण ले तथा शेष आरक्षित सीटें ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब एवं वास्तविक हकदार एससी-एसटी के लोगों को मिले कृपया इन बातों पर गौर करिए और पदोन्नति में आरक्षण के विरोध की इस लड़ाई में दिग्भ्रमित ना होते हुए सपाक्स का साथ दीजिए।
जय भारत,वंदे मातरम
राजीव खरे
सचिव, सपाक्स