
मुजफ्फरपुर टीम के तरफ से खेलते हुए हाल में पटना में संम्पन ऊर्जा टैलेंट सर्च टूर्नामेंट में सबसे अधिक 10 गोल दागने पर उसे मैन ऑफ द टूर्नामेंट के खिताब से उसे नवाजा गया है। अब राष्ट्रीय स्तर पर मौका मिलने पर पूजा पहले रायगढ़ और फिर दुबई में अपने को साबित करने को बेताब है।
पांच भाई-बहन के परिवार में पूजा तीसरे नंबर की है। पूजा को भी परिवार के पेट भरने के लिए फुटबॉल के मैदान की तरह असल जिंदगी में भी हर रोज स्ट्राइकर की भूमिका निभानी पड़ती है। पूजा ना सिर्फ स्कूल में पढ़ाई करती है बल्कि फुटबॉल खेलने के साथ मां-बाप की सब्जी की दुकान में भी हाथ बंटाती है। पापा के कदम थक जाने पर पूजा सब्जी का ठेला खिंचने में भी संकोच नहीं करती है।
पूजा जिस घर से आती है उस परिवार के लिए विदेश यात्रा ख्वाब में भी नहीं देखी जाती। पूजा की मानें तो उसकी इस उंचाई तक पहुंचनेे में परिवार ने भरपूर साथ निभाया। आगे पूजा एक सफल फुटबॉल खिलाड़ी बनना चाहती है।
पूजा का कहना है कि वो प्रतिदिन शाम में स्कूल जाकर फुटबॉल की प्रैटिक्स करती है। सुबह स्कूल जाने और परिवार के काम में हाथ बंटाने के कारण उसे समय नहीं मिल पाता है। उसका कहना है कि समाज के जिन लोगों ने उसे सब्जी वाली की बेटी का जो तगमा दिया है अब वो लोग अपना नजरिया बदल लेना चाहिए। पूजा की मां सजनी देवी सामाजिक तानों को याद करते हुए बेटी को बांहों में समेट कर फफक पड़ती है। वो कहती हैं कि साहब, हम लोग मुर्ख (अनपढ़) होकर जब बेटी पर भरोसा कर सकते है, तो लोग बेटियो के पैरों में क्यों बेरिया डालते हैं? हर मां-बाप को बेटियों को उसके मन की जिंदगी जीने की छुट देनी चाहिए।