
माना यह जा रहा है कि उस जमाने में युद्ध के दौरान इन हथियारों का इस्तेमाल किया जाता होगा। जमीन के नीचे लोहे के इन हथियारों के दबे होने से उन पर काफी जंग लग गया है। ये हथियार कब के हैं इसका पता पुरातत्ववेत्ता ही लगा पाएंगे।
ग्रामीणों का कहना है कि इससे पहले इस स्थान पर किसी प्रकार का मंदिर भी नहीं था। यदि मंदिर रहता तो कोई न कोई त्रिशूल या उस तरह का कोई हथियार जरूर मिला होता। खिलानन्द पूर्वाल नाम के एक ग्रामीण ने कहा कि इतना तय है कि ये हथियार काफी पुराने हैं और तब युद्व मे इस्तेमाल किए जाते होंगे। इनमें तलवारों में लकड़ी की मूठ लगी होगी जो मिट्टी के नीचे दबे रहने से सड़ गई होगी। गांव वालों का कहना है कि अगर उस जमीन की खुदाई और की जाए तो वहां से कई पौराणिक चीजें बरामद हो सकती हैं।