
गौरतलब है कि भारत अभी रक्षा सामानों के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है। हाल के बरसों में इसमें असाधारण तेजी आई है। २००७-११ में भी भारत सबसे बड़ा आयातक देश रहा, पर उस दौरान विश्व के कुल हथियार आयात में उसका हिस्सा ९.७ प्रतिशत था। अगले पांच वर्षों में यानी २०१२ से २०१६ के बीच यह बढ़ कर १३ प्रतिशत पर पहुंच गया।
अब स्थिति यह है कि दूसरे नंबर का आयातक देश सऊदी अरब इसके दो तिहाई से भी नीचे, ८ प्रतिशत पर खड़ा है। जाहिर है, भारत के राजस्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा सैन्य सामानों के आयात पर खर्च हो जाता है। इससे विदेशी कंपनियों को तो मोटा मुनाफा मिलता ही है, सौदा कराने वाली दलाल फर्मों की भी अच्छी कमाई होती है। लेकिन देश में न तो इससे कोई रोजगार बनता है, न ही सामाजिक विकास में इसकी कोई भूमिका होती है। पनडुब्बियां, लड़ाकू विमान, टैंक और हेलिकॉप्टर देश में बनेंगे तो एक तरफ हमारी आयात निर्भरता कम होगी, दूसरी तरफ रोजगार के मोर्चे पर फायदा होगा। इसके रास्ते में कई झंझट भी हैं, लेकिन अभी तो हमें अपना सारा ध्यान घरेलू कंपनियों को रक्षा निर्माण में उतारने पर केंद्रित करना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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