रास्ता नही, चीनी हथकंडा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। दुनिया में अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए चीन द्वारा की जा रही हरकतों से विश्व के अनेक देश नाराज हैं। चीन के इस महत्वाकांक्षी सिल्क रोड प्रॉजेक्ट ने भारत समेत दुनिया के कई देशों को चिंता में डाल दिया है। अमेरिका के साथ जर्मनी, फ्रांस जैसे अनेक देश 14 और 15 मई को इस प्रॉजेक्ट पर को हुए शिखर सम्मेलन से दूर ही रहे। दूर रहने का फैसला लेने वाले अधिकतर देशों को लगता है कि इसके जरिए चीन दुनिया में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहता है।

गौरतलब है कि करीब 1000 साल पहले तक यूरोप, मध्य एशिया और अरब से चीन को जोड़ने वाला एक बड़ा व्यापारिक मार्ग चलन में था, जिसे रेशम मार्ग कहा जाता था। भारतीय व्यापारी भी इसका खूब प्रयोग करते थे। चीन एक महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत उसे फिर से जीवित करना चाहता है। उसके प्रस्तावित प्रॉजेक्ट ‘वन बेल्ट वन रोड’ के दो रूट होंगे। पहला लैंड रूट चीन को मध्य एशिया के जरिए यूरोप से जोड़ेगा, जिसे कभी सिल्क रोड कहा जाता था। 

दूसरा रूट समुद्र मार्ग से चीन को दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी अफ्रीका होते हुए यूरोप से जोड़ेगा, जिसे नया मैरिटाइम सिल्क रोड कहा जा रहा है। लेकिन इसे लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि इस परियोजना की वजह से गरीब देश कर्ज के बोझ से दब जाएंगे।

अमेरिकी कूटनीतिज्ञ और विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन खुद को केंद्र में रखकर एक राजनीतिक-आर्थिक नेटवर्क तैयार कर रहा है और अमेरिका को इस क्षेत्र से बाहर करना चाहता है। रूस को लगता है, उज्बेकिस्तान जैसे देश को अपने प्रॉजेक्ट से जोड़कर चीन मध्य एशिया में मास्को के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहा है।

इंडोनेशिया के विपक्षी दलों का मानना है कि इससे चीन की दादागीरी बढ़ेगी। हालांकि चीन इन आरोपों से इनकार करता है। उसका कहना है कि इसके पीछे विशुद्ध व्यापारिक मकसद है और इसमें शामिल देशों को वह बाजार के सिद्धांतों पर कर्ज देता है। लेकिन यह भी सच है कि वह चीनी तकनीक के इस्तेमाल और अपने बिल्डरों को काम देने पर जोर देता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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