आदिवासी अधिकार यात्रा: युवक कांग्रेस 47 विधानसभाओं में करेगी भाजपा का सूपड़ा साफ

भोपाल। नर्मदा सेवा यात्रा के माध्यम से भाजपा ने 100 विधानसभाओं में जनता का मूड अपने पक्ष में कर लिया है तो 'पोल खोल पंचायत' के नाम पर कांग्रेस अलग अलग विधानसभाओं में जाकर भाजपा विधायकों की पोल खोल रही है। इन सबके बीच युवक कांग्रेस ने मध्यप्रदेश की 47 ​ऐसी विधानसभाओं को फोकस किया है जो या तो पूरी तरह से आदिवासी क्षेत्र हैं या जहां पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। युवक कांग्रेस 'आदिवासी अधिकार यात्रा' के माध्यम से लोगों के बीच जाकर बताएगी कि उनके अधिकार क्या हैं और उनके साथ शिवराज सिंह सरकार ने कितना अन्याय किया है। इनमें से ज्यादातर विधानसभाएं पहले ही भाजपा के लिए नुक्सानदायक रहीं हैं। यदि युवक कांग्रेस अपना टारगेट पूरा कर पाई तो इन 47 सीटों पर भाजपा का सूपड़ा साफ किया जा सकता है। 

युवा कांग्रेस की 24 मई को रतलाम जिले के सैलाना विधानसभा क्षेत्र से प्रारम्भ हो रही 'आदिवासी अधिकार यात्रा' को युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा बरार, कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव व गुजरात के प्रभारी कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के साथ क्षेत्रीय सांसद कांतिलाल भूरिया व कांग्रेस के वरिष्ट नेता प्रभुदयाल गेहलोत हरी झंडी बतायेंगे। इस यात्रा के शंखनाद में प्रदेश के सभी युवा कांग्रेस के पदाधिकारी, कार्यकर्ता व आदिवासी समूहों के लोग हजारों की तादात में जुट कर इस लड़ाई को प्रारंभ करेंगे। जो 6 जून तक प्रदेश करीब 45 से अधिक विधानसभाओं में जाकर सरकार के खिलाफ आदिवासी समाज के अधिकारों को लेकर सरकार को घेरेगी।   

युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुणाल चौधरी ने बताया कि मध्यप्रदेश में 2003 से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है लेकिन 14 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने आदिवासी वनवासी के हितों को लगातार अनदेखा किया है। इतना ही नहीं विकास के नाम पर और वन्य प्राणी संरक्षण तथा वन संरक्षण के नाम पर अनेक स्थानों पर हजारों आदिवासी को उनके परंपरागत निवास स्थानों से जबरन हटाया गया है तथा यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। वन अधिकार कानून जो कांग्रेस पार्टी ने दिया था उसके तहत जो पट्टे वह वन भूमि का अधिकार आदिवासी भाइयों को देना था वह अभी तक 1.5 लाख से अधिक लोगों को अभी तक नहीं दिया तथा 2.5 लाख लोगों को सरकार पट्टे देने का जो दावा करती है उन में बड़ी संख्या में गैर आदिवासी और व्यवसायिक कारणों से वन भूमि पर अवैध कब्जा करने वाले लोगों को वनवासी बनाकर उन्हें पट्टे प्रदान किए गए हैं और इसके असली हक़दार आदिवासी भाइयों को बेदखल किया जा रहा है।

नर्मदा परियोजना के विस्थापित आदिवासी भाइयों को पुनर्वास अभी तक नहीं हुआ और सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ने के कारण मध्य प्रदेश के 35 गांव पूरी तरह तथा 17 गांव आंशिक रूप से डूब क्षेत्र में आएंगे इन में आदिवासी लोगों की संख्या अधिक है। नर्मदा नदी के दोनों ओर वृक्षारोपण करने के नाम पर भी आदिवासी लोगों की जमीन बड़े पैमाने पर छीनी जाने वाली है इस से बचने के लिए मेरे आदिवासी भाई संघर्ष के लिए तैयार रहे युवक कांग्रेस व कांग्रेस पार्टी उनके साथ है।

आदिवासी भाइयों के कल्याण के लिए भारतीय जनता पार्टी की पाखंडी शिवराज सरकार जो वादा करती हैं वह सारे खोखले है आप सब वास्तविकता जानते हो। शिवराज सिंह की सरकार पिछले 13 सालों से आदिवासी लोगों को शोषित कर रही है तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार ,आवास, खेती ,पशुपालन ,रोजगार किसी भी क्षेत्र में कोई विकास नहीं किया तथा आदिवासी क्षेत्रों में खाली पदों की नियुक्ति भी नहीं कर रहे तथा फर्जी प्रमाण पत्र के बनाकर  आदिवासी लोगों का हक छीन रहे हैं। उनके विकास के बजट को लगातार केंद्र की मोदी सरकार और शिवराज सरकार कम कर रही है। 

चौधरी ने आदिवासी क्षेत्र की जानकारी देते हुए बताया कि शिक्षा का क्षेत्र- 10 विकास का परिणाम 
2013 मे 60.59%
2014 मे 45.36%
2016 मे 58.85%
तथा आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षकों के रिक्त पद
109667 पदों मे से 34006 पद रिक्त हैं
स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था तथा मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था में यही देखा जाए शिशु मृत्यु दर में तथा उनके टीकाकरण में एक लंबा अंतर आता है।
साथ ही 2014 की भारत सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट ऑफ द हाई लेबल कमेटी ऑन सोशियो इकोनॉमिक, हेल्थ एंड एजुकेशन स्टेटस ऑफ ट्राइबल कम्युनिटी के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समुदाय में शिशु मृत्यु दर 88 है जबकि मध्यप्रदेश में यह दर 113 है। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 129 है वही प्रदेश में दर 175 है आदिवासी समुदाय में टीकाकरण की स्थिति चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार देश में 12 से 23 माह के बच्चों की टीकाकरण की दर 45.5 है जबकि मध्यप्रदेश में दर 24.5 है 2015 की कैग की ने जिन आदिवासी बाहुल्य राज्य की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाए थे उसमें मध्यप्रदेश में शामिल है। इस रिपोर्ट में मध्यप्रदेश की जनजाति क्षेत्र में कुपोषण पर प्रदेश सरकार के प्रयास नाकाफी बताए गए कैग रिपोर्ट के मुताबिक 13 जिलों में आंगनवाड़ी में पोषण आहार के बजट में गड़बड़िया पाई गई थी महिलाओं में खून की कमी 52.5, कम वजन के बच्चे - 42.8, गंभीर कुपोषित बच्चे - 9.2, बच्चों में खून की कमी 68.9
महिलाओं में खून की कमी 52.5 इसके साथ ही शिवराज सरकार ने 22 अरब रुपए खर्च करने के बाद भी प्रदेश के बच्चों को कुपोषण से मुक्त नहीं करा पाई है।

कौशल विकास - 
वर्ष-प्रावधान-व्यय - लक्ष्य -उपलब्ध
2015-16- 800 लाख- 390.77-1000-5567
2016-17-800 लाख-233.28 माह दिसम्बर 2016-1000-3979

केंद्र सरकार द्वारा ministry faced by tribals
2011-12 - 14015.50 लाख
2012-13- 16518.04 लाख
2013-14- 15793.47 लाख
2014-15- 17321.42 लाख
2015-16 (as on 26/11/15) 8912.16

पलायन-  म.प्र. में बेरोजगारी इस तरह बढ़ रही है कि आदिवासी भाई रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।
दूध उत्पादन - मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में दूध उत्पादन की मात्रा में लगातार कमी आ रही है तथा प्रदेश सरकार इस बात को अनदेखा कर रही है।

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