पाकिस्तान की JAIL में भारतीयों को केमिकल वाली रोटियां दी जातीं हैं: खुलासा

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। भारत की जेलों में कैद पाकिस्तानी नागरिकों के मानवाधिकारों का पूरा ध्यान रखा जाता है परंतु पाकिस्तान की जेलों में कैद भारत के नागरिकों के यहां क्या क्या होता है। इसका नया खुलासा तब हुआ जब वहां से रिहा होकर कुछ मछुआरे आए। उन्होंने बताया कि जेलों में उन्हे रोटियां तो दी जातीं थीं परंतु कैमिकल वाली। इसके चलते मछुआरों ने जेल में रोटियां ही नहीं खाईं। वो उसके साथ मिली एक कटोरी सब्जी खाकर ही 14 महीनों तक जिंदा रहे। 

मोहम्मदपुर गांव निवासी जयचंद गौड़, रविशंकर गौड़ और संजय कुरील 15 अक्टूबर, 2015 को गुजरात के ओखा समुद्री तट पर मछली का शिकार करते समय अन्य 27 भारतीय मछुआरों के साथ पाक जल सेना के हत्थे चढ़ गए थे। इन मछुआरों को पाकिस्तान की मलीर लांघी जेल में 14 महीने बिताने पड़े।

इस जेल में सवा साल से बंद इन तीन मछुआरे जब रिहा होने पर वापस कानपुर स्थिर घर लौटे तो जेल के अनुभव बताते हुए तीनों रो पड़े। उन्होंने बताया कि पहले कुछ दिन उनके लिए बहुत कठिन रहे। जिस जेल में उन्होंने रखा गया था उसमें सारे पाक कैदी ही थे जो कि दिन में तीन बार उनसे साफ-सफाई करवाते थे। उन्हें उनके अंडरगारमेंट्स तक धोने पड़ते थे। जय चंद ने बताया, 'जेल का गार्ड भी उनका समर्थन करता थे क्योंकि उन्हें हमें परेशान करके एक तरह का आनंद मिलता था।'

जयचंद्र ने बताया कि खाने में दिनभर में सिर्फ पांच रोटियां मिलती थीं जो कि मैदे की बनी हुई होती थी। हमने नोटिस किया था कि इन रोटियों पर कुछ पाउडर छिड़का जाता था जिसके बारे में पता चला कि वह केमिकल था। हम डर गए और हमने रोटियां न खाने का फैसला किया।

उन्होंने बताया, 'शाकाहारी कैदियों को उनकी सब्जियां खुद बनाने की अनुमति थी लेकिन उन्हें सब्जियां खरीदनी होती थी। 14 महीनों के लिए हम केवल सब्जियों पर ही जिंदा रहे जो हमने साथ बनाई थी और वह भी तब किस्मत में होती थी जब पाक कैदी उसे लूटे ना। ऐसे समय हमें भूखा सोना पड़ता था।'

ये तीनों पिछले साल दिसंबर के अंतिम सप्ताह में जेल से बाहर आए थे जब पाकिस्तान ने 220 मछुआरों को छोड़ने का फैसला किया था। उनके मुताबिक जेल तो जेल है, लेकिन पाकिस्तान की जेल में रहना सबसे कठिन है। विशेषकर जब आप भारतीय हो। साथी कैदी और जेल के गार्ड भारतीयों के खिलाफ एकजुट हो जाते हैं।

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