विरोध प्रदर्शन और हड़ताल कभी असंवैधानिक नहीं होते: सुप्रीम कोर्ट

धनंजय महापात्र/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर सुनवाई करने से से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक संगठन हड़ताल बुलाकर इस संबंध में पहले दिए गए न्यायिक आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं। याचिका में कहा गया था कि हड़ताल से आम जनजीवन पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए उसे लेकर स्थिति साफ होनी चाहिए। चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा, 'हड़ताल कभी असंवैधानिक नहीं हो सकती। विरोध करने का अधिकार एक कीमती संवैधानिक अधिकारी है। हम कैसे कह सकते हैं कि हड़ताल असंवैधानिक होती है?' जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए कोर्ट को अपनी बात समझाने में नाकाम रहने पर याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी वापस लेने का फैसला किया।

बता दें कि हड़ताल और बंद के खिलाफ अदालतें पहले कई फैसले दे चुकी हैं। केरल हाईकोर्ट ने 1997 में भरत कुमार केस में कहा था, 'ठीक से समझा जाए तो बंद बुलाने से नागरिकों की स्वतंत्र गतिविधियों पर असर पड़ता है और इससे कामकाज करने का उनका अधिकार प्रभावित होता है। अगर विधायिका इस पर रोक के लिए कोई कानून नहीं बनाती या इसे कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाती, तो यह हमारा फर्ज है कि नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करें और उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करें।'

सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच ने भी इस आदेश पर अपनी मुहर लगाई थी। हालांकि अदालतों ने कभी यह साफ नहीं किया है कि स्ट्राइक, बंद और हड़ताल में क्या अंतर है।
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