राशन दुकान भी RTI के दायरे में, जानकारी देनी होगी: सूचना आयोग

भोपाल। मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सहकारी समितियों के माध्यम से संचालित सभी राशन दुकानों को सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी नागरिकों को देनी होगी। अभी तक सहकारी संस्थाएं, उनके द्वारा संचालित राशन दुकानों से संबंधित जानकारी देने से यह कहकर इंकार करती रही हैं कि सहकारी समितियां आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आने के कारण जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं। आयोग द्वारा इस दलील को सिरे से खारिज कर दिए जाने से अब नागरिकों को राशन दुकानों से संबंधित जानकारियां मिलने का रास्ता साफ हो गया है। 

राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने अहम फैसले की प्रति प्रमुख सचिव, सहकारिता विभाग को भेज कर निर्देशित किया है कि सभी संबंधित अधिकारियों व उचित मूल्य की दुकानों की अनुज्ञप्ति (लायसेंस) धारक सहकारी समितियों को इस फैसले की प्रति प्रेषित कर जरूरी दिषा-निर्देष जारी करें, ताकि भविष्य में सहकारी समितियां उनके द्वारा संचालित उचित मूल्य की दुकानों से संबंधित सूचनाएं देने से इंकार करने की वैधानिक त्रुटि न करें।  इन दुकानों को किए जाने वाले आवष्यक वस्तुओं के आवंटन, उसके उठाव व वितरण से संबंधित जानकारी विभागीय वेबसाइट पर नियमित रूप से अनिवार्यतः व स्वतः, सार्वजनिक की जानी चाहिए। 

आयुक्त आत्मदीप ने आदेश में स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत संचालित शासकीय उचित मूल्य दुकानें साफतौर पर आरटीआई अधिनियम की परिधि में आती है। इसका प्रमुख आधार यह है कि ये दुकानें सीधे तौर पर सरकार के नियंत्रणाधीन हैं। इन्हें जनता द्वारा चुनी गई सरकार की ओर से, जन-धन से संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत, जरूरतमंद जनता के हितार्थ चलाया जा रहा है। इनके नाम के आगे ‘षासकीय’ शब्द जुड़ा है। ये दुकानें न केवल खाद्य, नागरिक आपूर्ति व उपभोक्ता संरक्षण विभाग के प्रत्यक्ष नियंत्रण के अधीन हैं, बल्कि इनकी कार्यप्रक्रिया भी यही विभाग निर्धारित करता है। विभाग को इन दुकानों को खोलने, बंद करने व इनके विरूद्ध कार्रवाई करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। 

ये दुकानें पूर्णतः शासकीय अनुदान पर आधारित आवष्यक वस्तुओं के वितरण का शासकीय माध्यम हैं। ये सार्वजनिक धन से संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली की क्रियान्वयन एजेंसी भी हैं। अतः इन दुकानों का कार्य लोक क्रियाकलाप की श्रेणी में आता है। इसलिए ये दुकानें धारा 2 (एच) के तहत स्पष्टतः ‘‘लोक प्राधिकारी’’ हैं। साथ ही इन दुकानों द्वारा संधारित वे सभी दस्तावेज ‘लोक दस्तावेज’ हैं जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित हैं। उक्त आधार पर सहकारी संस्थाओं के माध्यम से संचालित शासकीय उचित मूल्य की दुकानें, सूचना के अधिकार के तहत नागरिकों को वांछित जानकारी देने के लिए बाध्य हैं।  

शासकीय अधिसूचना: 
आदेश में कहा गया है कि खाद्य, नागरिक आपूर्ति व उपभोक्ता संरक्षण विभाग द्वारा मप्र राजपत्र में प्रकाषित अधिसूचना दिनांक 25 मार्च 2015 से भी उक्त तथ्यों की पुष्टि होती है। इस अधिसूचना में शासकीय उचित मूल्य दुकान के विक्रेता को ‘‘लोक सूचना अधिकारी’’ एवं दुकान आवंटित करने वाले अधिकारी (जिला आपूर्ति नियंत्रक/जिला आपूर्ति अधिकारी/अनुविभागीय अधिकारी, राजस्व) को ‘‘प्रथम अपीलीय अधिकारी’’ नामित किया गया है। साथ ही निर्देषित किया गया है कि उचित मूल्य दुकान आवंटिती को सार्वजनिक वितरण प्रणाली संबंधी अभिलेख सूचना के अधिकार के तहत मांगे जाने पर विहित शुल्क प्रभारित कर उपलब्ध कराने होंगे। 

आयोग के आदेश में कहा गया है कि इन दुकानों से संबंधित जानकारी देने से दुकान चलाने वाली सहकारी संस्था के स्वरूप, मर्यादा व कार्य प्रक्रिया में न कोई अवांछनीय हस्तक्षेप होता है और न ही उन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लोकहित में, लोक धन से संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अनियमितताओं की रोकथाम कर लोक धन का सदुपयोग सुनिष्चित करने के लिए, इस प्रणाली के क्रियान्वयन अंग -शासकीय उचित मूल्य दुकानों के क्रियाकलाप में शुचिता व पारदर्षिता लाना आवष्यक/वांछनीय है और यही सूचना का अधिकार अधिनियम का ध्येय भी है। इन दुकानों के माध्यम से म.प्र. की 5.34 करोड़ आबादी को सस्ता राषन मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के तहत ही, 2015-16 में 416.11 करोड़ रू. का अनुदान दिया गया है तथा 2016-17 में 724.11 करोड़ रू. का अनुदान देने का बजट प्रावधान किया गया है।

क्या था मामला: 
अपीलार्थी एडवोकेट जगदीश लाल यादव ने सेवा सहकारी संस्था, मुंगावली (अशोकनगर) से उसके द्वारा संचालित उचित मूल्य दुकान की वितरण पंजी व स्टाक पंजी की प्रमाणित प्रति मांगी थी। संस्था ने यह कह कर जानकारी देने से इंकार कर दिया कि जानकारी द्वेशवष मांगी गई है और सहकारी संस्थाएं लोक प्राधिकारी की श्रेणी में नहीं आती हैं। इसलिए संस्था पर आरटीआई अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होने से वह जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है। 

इसके विरूद्ध अपीलार्थी द्वारा प्रथम अपील करने पर प्रथम अपीलीय अधिकारी/अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) ने खाद्य विभाग द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 25 मार्च 15 के अनुसार अपीलार्थी को जानकारी देने का आदेष दिया। किन्तु संस्था के लोक सूचना अधिकारी ने इसका पालन नहीं किया। इस पर अपीलार्थी ने आयोग में द्वितीय अपील की जिसे मंजूर करते हुए आयुक्त आत्मदीप ने लोक सूचना अधिकारी की दलील निरस्त कर दी और 15 दिन में अपीलार्थी को वांछित जानकारी निःषुल्क देकर आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन पेष करने का आदेष पारित किया है। साथ ही लोक सूचना अधिकारी के विरूध्द धारा 19 व 20 के तहत दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी है। 

प्रभाव: 
न्याय दृष्टांत बनने वाले इस फैसले का असर राजस्थान सहित अन्य राज्यों पर भी होगा, जहां म.प्र. की तरह उचित मूल्य दुकानों के लाइसेंस सिर्फ सहकारी संस्थाओं को दिए जाते हैं। 

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