
वैसे इसके दूरगामी अर्थ निकालने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बावजूद वहां के अल्पसंख्यकों पर बढ़ती कट्टरता का खतरा पहले की तरह ही मंडराता रहेगा। वहां की सरकार और सेना इस मजहबी कट्टरता का इस्तेमाल राजनीतिक व कूटनीतिक हथियार के रूप में बंद कर देगी, इस पर सोचा भी नहीं जा सकता। इस बात की कोई उम्मीद नहीं कि पाकिस्तान ईश निंदा कानून में कोई ढील देगा। कुलजमा बात इतनी है कि पाकिस्तान के बीच कुछ ऐसी ताकतें सक्रिय हैं, जो समाज के आंतरिक टकरावों को कम करना चाहती हैं, यह उसी का नतीजा है। जब से पाकिस्तान में चुनी हुई सरकारें बनने लगी हैं, ऐसे प्रयास दिखने लगे हैं। खासकर, नवाज शरीफ की सरकार बनने के बाद से। लोकतंत्र के दबाव किस तरह के होते हैं, इसे पाकिस्तान के ताजा उदाहरण से समझा जा सकता है। हिंदू विवाह कानून पर पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दस्तखत से चंद रोज पहले एक वीडियो इंटरनेट पर बहुत चर्चित हुआ था, जिसमें प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तानी हिंदू समुदाय द्वारा मनाए जा रहे होली-उत्सव में पहुंचे थे। वीडियो में दिखाया गया है कि नवाज शरीफ सम्मेलन में विराजमान हैं और गायत्री मंत्र का पाठ चल रहा है।
पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए यह विवाह कानून कितना महत्वपूर्ण है, इसे इससे समझा जा सकता है कि अब पाकिस्तान का सिख समुदाय भी सिख विवाह कानून बनाए जाने की मांग कर रहा है। जबकि एक दूसरे मोर्चे पर पाकिस्तान में रहने वाले सिख समुदाय को एक अलग लड़ाई लड़नी पड़ रही है। पाकिस्तान १९ साल बाद जनगणना की तैयारी कर रहा है। इस जनगणना का जो फॉर्म तैयार हुआ है, उसमें बाकी सभी धर्मों का तो जिक्र है,पर सिख धर्म का नहीं। जाहिर है, धर्म के मामले में सिखों की गिनती ‘अन्य’ के तहत की जाएगी। सिखों को डर है कि इससे पाकिस्तान में उनकी आबादी का प्रामाणिक आंकड़ा हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। इससे योजनाओं-नीतियों में उनकी अनदेखी भी हो सकती है। वहां के सिख इसका विरोध कर रहे हैं, पर उनकी आवाज सुनता फिलहाल कोई नहीं दिख रहा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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