
कुछ दिन पहले भोपाल के समाचार पत्रों में 'महामंत्री, सपाक्स' के नाम से कुछ वक्तव्य आया था। ऐसा कोई पद सपाक्स के संविधान में नहीं है। तत्संबंधित स्पष्टीकरण भी संस्था सचिव श्री खरे ने दिया था। पुन: अब कोशिशें प्रारम्भ हुई हैं हमारी विश्वसनीयता को भुनाने में उन लोगों द्वारा जिनका एकमात्र ध्येय किसी संगठन के पदाधिकारी का तमगा लेकर घूमने की है। ऐसे लोग संगठन के शुरुआती दिनों में इसी उद्देश्य से जुड़ने आये थे, शर्त थी कि उन्हें पदाधिकारी बनाया जावे।
कुछ नये संगठन बन रहे हैं, उद्देश्य 'पदोन्नति में आरक्षण' का विरोध। यह विरोध, देखा जाये तो सपाक्स की बपौती नहीं है और हर किसी को स्वतंत्रता है उनके ढंग से विरोध की लेकिन वे अपनी ज़मीन भी स्वयं तैयार करें यदि साथ नहीं हैं तो। जानकारी यह मिल रही है कि जिलों में सपाक्स पदाधिकारीयौ से भी सम्पर्क कर एक नया धडा बनाने की कोशिश की जा रही है। ऐसी किसी पहल से जुड़े उसके पूर्व परख ज़रूर लें। यह अब सर्वविदित है कि सपाक्स ही एकमात्र मंच है जो न्यायालयीन लड़ाई लड़ रहा है, दावे कई ने किये थे।
प्रवक्ता सपाक्स