
आयोग के अध्यक्ष देवराज बिरदी ने अन्य दो सदस्यों के साथ सुबह 11 बजे बिजली कंपनी द्वारा दिए गए बिजली की कीमतों में इजाफा किए जाने के प्रस्ताव पर सुनवाई शुरू की। पूर्व आईएफएस अफसर, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक पार्टियों सबने एक सुर से बिजली कंपनियों की कारगुजारियां उजागर की। लोगों ने कहा कि बिजली कंपनियों ने फिर लूटने की तैयारी कर ली है। बिजली की दरें घटाने के बजाय बढ़ाई जा रही है। प्रशासन अकादमी में आयोजित जनसुनवाई में दो दर्जन से अधिक आपत्तिकर्ताओं ने आपत्ति दर्ज की। गौरतलब है कि बिजली कंपनियों ने करीब 12 फीसदी तक दरें बढ़ाने की मांग की है।
सबसे महंगी बिजली हो जाएगी मप्र में
मप्र में 17500 मेगावाट उपलब्धता है। प्रदेश में अधिकतम बिजली की मांग 11500 मेगावाट है। फिर भी हम निजी कंपनियों से बिजली खरीद रहे हैं। निजी कंपनियों से बिना कॉम्पिटिटिव बिडिंग के समझौता किए गए। अगर कंपनियां चाहें तो करोड़ो रुपए बचा सकती है। दूसरे राज्यों को कम दरों पर बिजली बेचने की क्या जरूरत है। इसका उपयोग प्रदेश में हो और दरें कम की जाएं।
आलोक अग्रवाल, प्रदेश संयोजक, आप
नहीं समझ आता फिक्स चार्ज का गणित
फिक्सड चार्ज अप्रैल, मई और जून में लिया जाता है। इसे लेने की क्या जरूरत है जब पहले से ही कंपनियों ने सिक्युरिटी मनी जमा कर रखा है। उपभोक्ता की जमा राशि पर कंपनी चार प्रतिशत ब्याज देती है और सरचार्ज 12 प्रतिशत लगा दिया जाता है। ये तो गलत है।
पीसी शर्मा, जिला अध्यक्ष, कांग्रेस
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दरें बढ़ाएं नहीं, कम की जाएं
कंपनियां बिजली चोरी क्यों नहीं रोकती। खुलेआम बिजली चोरी करने वालों का कुछ नहीं होता। ईमानदार उपभोक्ता पर बोझ लादा जाता है।
विपिन कुमार जैन, लघु उद्यमी
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आप तो बिल आसान कर दें
बिल को समझना आसान नहीं है। इसका सरलीकरण हो। फिक्सड चार्ज की कोई उपयोगिता नहीं है, फिर भी यह लिया जाता है। छोटे लोगों को बिल भरने में बहुत परेशानी होती है।
बीएल जोनवार, शिक्षक
सबसे महंगी बिजली हमें क्यों ?
महाराष्ट्र को छोड़कर सबसे महंगी बिजली मप्र में है। जब यहां पहले से ही इतनी महंगी बिजली है तो फिर से बिजली दरों को बढ़ाने का क्या औचित्य है। जब हमारे पास बिजली है और हम बेच रहे हैं तो इसे सस्ती किया जाए।
एस डबास, पूर्व आईएफएस