
उन्होंने कहा कि एक दलित जज को अवमानना नोटिस जारी करना अनैतिक है और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के खिलाफ है। जस्टिस करनन ने यह भी कहा कि 'संविधान पीठ को हाईकोर्ट के कार्यरत जज के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना नोटिस जारी नहीं कर सकती। मेरा पक्ष सुने बिना मेरे खिलाफ ऐसा आदेश कैसे जारी किया जा सकता है। इससे जाहिर होता है कि पीठ मुझसे द्वेष भावना रखती है। अवमानना नोटिस जारी करने से मेरी समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार प्रभावित हुआ है और साथ ही यह प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस के भी खिलाफ है।'
जस्टिस करनन ने संविधान पीठ द्वारा अवमानना नोटिस जारी करने के फैसले को विचित्र बताते हुए कहा कि उनके मामले को जस्टिस खेहर न सुनें। उन्होंने कहा कि या तो उनके मामले को तत्काल संसद के पास भेज दिया जाए या जस्टिस खेहर के सेवानिवृत्त होने के बाद मामले की सुनवाई हो। जस्टिस करनन के इस पत्र के बाद सोमवार का दिन सुप्रीम कोर्ट में अहम होगा क्योंकि उसी दिन संविधान पीठ ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होकर अपनी सफाई देने के लिए कहा है।
करनन ने लगाया था जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप
मालूम हो कि जस्टिस करनन पर आरोप है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कुछ जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उन्होंने बाकायदा ऐसे 20 जजों के नामों की सूची भी दी थी। इस मामले में गत आठ अक्तूबर को जस्टिस जेएस खेहर सहित सुप्रीम कोर्ट के सात वरिष्ठ जजों की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जस्टिस करनन को अवमानना नोटिस जारी करते हुए 13 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा था।
संविधान पीठ ने जस्टिस करनन को न्यायिक और प्रशासनिक कामों से दूर रहने के लिए कहा था। यह निर्देश जारी करते हुए पीठ ने यह भी कहा था कि चूंकि हम पहली बार एक हाईकोर्ट के कार्यरत जज के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी कर रहे हैं, लिहाजा हमें काफी सावधानी और सतर्कता के साथ निर्णय लेना होगा।
पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, यह जानना हमारे लिए जरूरी है क्योंकि सात सदस्यीय संविधान पीठ कोई फैसला लेती है तो वह नजीर बनेगी। सात सदस्यीय इस पीठ के फैसले को पलटना बेहद मुश्किल है।