
यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट ने माना कि अधिकारियों द्वारा छूट दिया जाना धार्मिक आजादी में दखल है लेकिन साथ ही उसने यह भी कहा कि यह दखल बच्चों को सामाजिक बहिष्कार से बचाने के लिए न्यायोचित है। अधिकारियों का कहना था कि लड़कियों को यह नियम मानना ही होगा।
2010 के इस मामले में तब माता-पिता पर नियमों का उल्लंघन और अपने कर्तव्यों को पूरा ना करने के कारण 1300 यूरो (करीब 94,000 रुपए) का जुर्माना लगाया गया था। माता-पिता का कहना था कि यह व्यवहार यूरोपीय मानवाधिकार कन्वेंशन के आर्टिकल 9 का उल्लंघन है। इसके तहत नागरिकों को विचार, धर्म और अंतःकरण की स्वतंत्रता का अधिकार देता है।