नई दिल्ली। क्या जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के न्यायाधीश भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं। क्या संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति के आदेश के बिना जम्मू-कश्मीर में किसी संवैधानिक संशोधन का लागू नहीं होना न्यायाधीशों के लिए वहां संविधान के क्रियान्वयन को अनिवार्य नहीं बनाता। संविधान आदेश 1954 को चुनौती देने संबंधी एक याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जी.रोहिणी व न्यायामूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि याची को जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के समक्ष याचिका दायर करनी चाहिए थी। अगली सुनवाई 13 फरवरी को होगी। यह जनहित याचिका दिल्ली निवासी वकील सुरजीत सिंह ने दायर की है। याची ने संविधान आदेश 1954 को चुनौती दी है, जिसमे संविधान के अनुच्छेद 368 के एक प्रावधान को जोड़ा गया है। कहा गया है कि ऐसा कोई भी संशोधन जम्मू-कश्मीर राज्य के मामले में उस समय तक प्रभावी नहीं होगा जब तब अनुच्छेद 370 के उपबंध (1) के तहत उसे राष्ट्रपति के आदेश से लागू नहीं किया जाए।
याची ने आरोप लगाया कि ऐसा लगता है कि जम्मू-कश्मीर में हाई कोर्ट के न्यायाधीश भारतीय संविधान को लागू करने को बाध्य नही हैं।