तहसीलदार के लिए रिश्वत ले रहा क्लर्क गिरफ्तार

जबलपुर। आम जनता के कामकाज से जुड़े लगभग हर दफ्तर में रिश्वतखोरी खुलेआम चलती है। सब जानते हैं कि यह वरिष्ठ अधिकारी के आदेश पर होती है और हर शाम इसका बंटवारा भी होता है। तहसील आॅफिसों में होने वाली घूस वसूली का हिस्सा कलेक्टर तक भी जाता है। इसी तरह की रिश्वत वसूल रहा एक क्लर्क तहसील कार्यालय में पकड़ा गया। वो पकड़ा गया क्योंकि उसने अपने हाथ में रिश्वत की रकम ली थी। तहसीलदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

डीएसपी लोकायुक्त प्रभात शुक्ला के मुताबिक महाराजपुर निवासी गौरीशंकर यादव ने जमीन का नामांतरण कराया है। तहसीलदार स्तर से आदेश भी कर दिया गया है। इस आदेश की प्रति लेने के लिए गौरीशंकर यादव से लिपिक ने 2000 रुपए की डिमांड की थी। इसकी शिकायत गौरीशंकर ने लोकायुक्त में की थी। जांच के बाद लोकायुक्त टीम ने लिपिक को रंगेहाथ गिरफ्तार करने के लिए प्लान तैयार किया। 

इसी के मुताबिक टीम कलेक्ट्रेट कार्यालय खुलते ही वहां पहुंच गई। लेकिन लिपिक ने गौरीशंकर को दोपहर तक नहीं बुलाया। दोपहर 3 बजे लिपिक कार्यालय पहुंचा और गौरीशंकर को नामांतरण आदेश देने के लिए कमरे में बुलाया। योजना के मुताबिक शिकायतकर्ता ने केमिकल लगे 500-500 रुपए के नए नोट जैसे ही लिपिक परमार को थमाए टीम ने उसे रंगेहाथ दबोच लिया। टीम ने पानी में लिपिक का हाथ डलवाया तो वह लाल हो गया। लिपिक के खिलाफ मौके पर ही प्रकरण कायम किया गया है। कार्रवाई एक घंटे से ज्यादा समय तक चलती रही।

अब होगा निलंबन
इससे पहले लिपिक पनागर तहसील कार्यालय में पदस्थ रहा। वहां से उसका शहर में ट्रांसफर किया गया था। कुछ दिनों तक लिपिक अवकाश पर रहा। फिर तहसीलदार गोहलपुर कार्यालय में उसे शिफ्ट करने के आदेश मिले। रिश्वत लेते पकड़े जाने के बाद अब जिला प्रशासन उसके निलंबन की कार्रवाई कर रहा है।

हर बार फंसते हैं लिपिक, अफसर नदारद
कलेक्ट्रेट कर्मचारियों के बीच चर्चा रही कि अब तक लोकायुक्त की जितनी कार्रवाई देखने को मिली हैं, उनमें कभी तहसीलदार या अफसर मौके पर नहीं होता। तत्कालीन कलेक्टर गुलशन बामरा के कार्यकाल में कोतवाली तहसीलदार के कमरे में पटेल बाबू को पकड़ा गया था। उस समय भी तहसीलदार सतीश गुप्ता कार्रवाई से ठीक पहले चले गए थे। इसके बाद की सभी कार्रवाई में अचानक ही अफसरों के कार्यालय से नदारद होने की जानकारी मिलती रही और ट्रैप लिपिक को किया गया। सवाल यह है कि क्या अधिकारी को पहले से सूचना मिल जाती है कि इस तरह की कार्रवाई होने वाली है। 

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