
जेटली ने साफ कर दिया कि कोई भी राजनीतिक पार्टी पुराने नोटों (500 और 1000) में चंदा ग्रहण नहीं करेंगी। ऐसा करने पर उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। आपको बता दें कि आईटी एक्ट 1961 के सेक्शन 13ए के तहत पॉलिटिकल पार्टियों को अपने अकाउंट का पूरा ब्योरा देना होता है। राजस्व सचिव ने कहा कि इस तरह की जो भी खबरें चल रही हैं, वो भ्रामक और गलत हैं।
इसके अलावा वित्तमंत्रालय की ओर से भी एक आधिकारिक प्रेसनोट जारी किया गया है। इसके लिखा गया है कि:
कुछ समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट से इस तरह के गलत संकेत मिलते हैं कि पुराने करेंसी नोटों को जमा करने के परिप्रेक्ष्य में चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न की कोई जांच नहीं हो सकती। ऐसा लगता है कि इस तरह के निष्कर्ष इस तथ्य की वजह से निकाले गए हैं कि राजनीतिक दलों की आय को खंड-13ए के तहत आयकर से छूट प्राप्त है।
इस परिप्रेक्ष्य में निम्नलिखित स्पष्टीकरणों को ध्यान में रखे जाने की जरूत है –
1. आयकर से छूट कुछ खास शर्तों के तहत केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों को दी जाती है। जिनका जिक्र खंड-13ए में है। इसमें बहीखातों का रख-रखाव तथा अन्य दस्तावेज शामिल हैं, जिससे निर्धारण अधिकारी उनकी आय को घटाने में समर्थ हो सकें।
2. 20,000 रुपये से अधिक के प्रत्येक स्वैच्छिक योगदान के संबंध में राजनीतिक दल को ऐसा योगदान देने वाले व्यक्ति के नाम एवं पते समेत ऐसे योगदानों के रिकॉर्ड का रख-रखाव करना होगा।
3. ऐसे प्रत्येक राजनीतिक दल के खातों का एक चार्टर्ड एकाउंटेंड द्वारा लेखा परीक्षण किया जाएगा।
4. राजनीतिक दल को एक अनुशंसित समय सीमा के भीतर ऐसे प्राप्त अनुदानों के बारे में चुनाव आयोग को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
आयकर अधिनियम में राजनीतिक दलों के खातों की जांच करने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं तथा ऐसे राजनीतिक दल रिटर्न भरने समेत आयकर के अन्य प्रावधानों के भी विषय हैं।