उत्तर प्रदेश :समाजवादी संघर्ष से अन्य दलों का रास्ता साफ़

राकेश दुबे@प्रतिदिन। समाजवादी पार्टी के नेताओं के बयानों और उनके द्वारा घोषित प्रत्याशियों की सूची से साफ है कि वे अपनी पार्टी को पुराने ढर्रे पर ही ले जाना चाहते हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में किसी नए राजनीतिक प्रयोग की संभावना भी लगभग समाप्त हो गई है। हाल तक लग रहा था कि पार्टी पारंपरिक सामाजिक समीकरण से हटकर एक नए ढांचे में ढलने के लिए तैयार है। नोटबंदी और हमलावर हिंदुत्व के खिलाफ वह एक राजनीतिक धुरी की भूमिका निभाएगी और अपने साथ कुछ और दलों को जोड़कर चुनाव लड़ेगी।

लेकिन अब नेताओं की हरकतों ने साफ कर दिया कि वे किसी भी तरह का गठबंधन नहीं करेंगे। सीएम अखिलेश यादव के कामकाज और उनकी इमेज का इस्तेमाल करके खुद को विकासोन्मुख आधुनिक पार्टी के रूप में पेश करने की उम्मीद भी समाजवादी पार्टी से लगाई जा रही थी। इसके लिए आपराधिक छवि वाले नेताओं से किनारा करने और सभी समुदायों के युवाओं को जोड़ने की कोशिश जरूरी थी। लेकिन मुलायम सिंह को यह भी मंजूर नहीं। वे पार्टी को वर्ष 2007 के यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर लट्ठधारी मॉडल तक ही सीमित रखना चाहते हैं, जिसमें उम्मीदवार की छवि या सामाजिक भूमिका कोई मायने नहीं रखती।

इससे पहले देश की किसी भी पार्टी ने अपने ही मुख्यमंत्री को इस तरह खारिज किया हो और उसके अपेक्षाकृत बेहतर कामकाज को घूरे पर डाल दिया हो। बुधवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने एसपी के 325 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिसके 175  नामों की घोषणा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव पहले ही कर चुके थे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को सभी 403 सीटों के लिए नामों की एक लिस्ट सौंपी थी। मुलायम सिंह ने उनकी सूची में से लगभग एक तिहाई नाम सीधे काट दिए।जो अब अखिलेश द्वारा जारी सूची में हैं। 

इससे लगता है कि अखिलेश की छवि को मुलायम अपने ब्रैंड की राजनीति के लिए खतरा मानते हैं और दूसरे दलों से तालमेल के बारे में सोच भी नहीं पाते, औरों के साथ मिलकर जीतना उन्हें स्वतंत्र रहकर हारने से ज्यादा हानिकर लगता है।उन्हें भय है कि अगर गठबंधन को जीत मिलती है, तो इसका फायदा राज्य में अखिलेश को  और केंद्र में राहुल गांधी को मिलेगा। उसके बाद एसपी के सारे बड़े नेता बेरोजगार हो जाएंगे और पार्टी का जनाधार खिसक जायेगा, गांवों के लोग तो सिर्फ अपनी बिरादरी के नेता का मुंह और बूथ पर पार्टी की हनक देखकर वोट देते है। जाहिर है, मुलायम की यह सोच बीजेपी और बीएसपी का रास्ता आसान बना रही है। देखना है, दोनों में से कौन इसका ज्यादा फायदा ले पाती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!