नोटबंदी: कंगाल हो रहे बैंकों को बचाने की रणनीति तो नहीं

आशीष दुबे/नईदिल्ली। भारत में अचानक हुई नोटबंदी के पीछे का रहस्य अब भी बरकरार है। इसे कालाधन से जोड़कर बताया जरूर जा रहा है परंतु आर्थिक मामलों का हर जानकार जानता है कि इससे कालेधन पर बहुत थोड़ा सा ही असर पड़ेगा। बिल्कुल उतना ही जितना आम आदमी को उसकी जेब कट जाने पर पड़ता है। तो क्या पाकिस्तान से आ रहे नकली नोटों को रोक पाने में बिफल रहने के कारण यह निर्णय लिया गया या फिर कंगाल हो रहे भारतीय बैंकों को बचाने की नई रणनीति है। विजय माल्या जैसे 2000 से ज्यादा करोड़पति कारोबारी बैंकों का लाखों करोड़ रुपए डुबा चुके हैं। यह कोई खाली खजाना भरने की रणनीति तो नहीं। 

मुद्रा का स्वरूप परिवर्तन पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी पुराने नोट चलन से बाहर किए जाते रहे हैं। फिर इस बार ऐसा क्या हो गया जो सबकुछ अचानक करना पड़ा। पूरे देश को परेशान कर दिया गया। कोई कुछ भी तर्क दे परंतु एक सर्वमान्य सत्य है कि इस निर्णय से बद्दुआओं की बाढ़ आ गई है। बेवजह लाइन में लगना कोई पसंद नहीं करता। अपना ही पैसा आप निकाल नहीं सकते। यह प्रतिबंध कोई सहन नहीं करना चाहता। सवाल यह है कि रहस्य क्या है, क्यों सरकार ने इस तरह का निर्णय लिया। 

कालेधन और नकली नोट की तरफ से ध्यान हटाएं तो एक विषय और सामने आता है। पिछले काफी समय से आम लोगों का पैसा बैंकों में जमा नहीं हो रहा था। लोग एफडी नहीं करा रहे थे। लोगों के पास खाते हैं लेकिन सेविंग अकाउंट में वो ज्यादा रकम नहीं रखते। कारण, बैंकों की लगतार गिरती ब्याज दर। लोग निवेश के दूसरे रास्ते खोजने लगे थे। गोल्ड और प्रॉपर्टी शुरू से ही अच्छा माध्यम माने गए हैं। पिछले 10 सालों में इसमें निवेश तेजी से बढ़ा है। ज्यादा ब्याज के लालच में लोग चिटफंड कंपनियों में भी करोड़ों लगा चुके हैं। यह जानते हुए भी कि जोखिम ज्यादा है, लोग दूसरे निवेश विकल्प चुन रहे थे। बैंक में पैसा रखना पसंद नहीं कर रहे थे। मजबूरी में बैंकों को 'मिनिमम बैलेंस' की शर्त रखनी पड़ी लेकिन बात इससे भी नहीं बनी। विजय माल्या जैसे हजारों करोड़पतियों ने बैंकों का लाखों करोड़ रुपए डुबा दिया। बैंक बर्बादी के कगार पर थे। 

नोटबंदी से यह फायदा होगा
नोटबंदी के बहाने सरकार ने आम नागरिकों के बैंक खातों पर ना केवल प्रतिबंध लगा दिए बल्कि उन्हे घरों में रखी नगदी जमा कराने के लिए भी मजबूर कर दिया। इस देश में आज भी लोग 60 प्रतिशत लोग आॅनलाइन का अर्थ ही नहीं समझते। 125 करोड़ की आबादी वाले देश में केवल 14 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं। बैंक खातों की तुलना में एटीएम धारकों की संख्या 54 प्रतिशत ही है और इसमें से भी एटीएम यूजर्स की संख्या केवल 28 प्रतिशत। नोटबंदी के निर्णय के बाद लोगों को मजबूरन घरों में रखा पैसा बैंकों में जमा कराना पड़ रहा है। इससे बैंकों के खजाने भर रहे हैं। 

सरकार ने विथड्राल की लिमिट फिक्स कर दी है। एटीएम से एक दिन में 2000 रुपए और खाते से डायरेक्टर विथड्राल करने पर सप्ताह में मात्र 10000 रुपए। इस तरह बैंकों में एक बड़ा अमाउंट जमा रहा है जबकि निकासी बहुत छोटी है। सिर्फ कहा जा रहा है कि दो चार दिन में सब ठीक हो जाएगा परंतु इसमें महीनों लगने वाले हैं। एटीएम मशीन में ऐसे प्रबंध ही नहीं हैं कि 2000 का नोट बाहर निकल सके। खातों पर लगे तमाम सारे प्रतिबंध धीरे धीरे खोले जाएंगे। इस तरह लंबे समय तक बैंकों के भंडार भरे रहेंगे और बैंक कंगाल होने से बच जाएंगे। 
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