शहडोल चुनाव: माई के लाल देंगे शिवराज सिंह को तीखा जवाब

राजेश शुक्ला/अनूपपुर। शहडोल संसदीय उपचुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया 26 अक्टूबर से प्रारंभ हो चुकी है। कांग्रेस ने पुष्पराजगढ़ की युवा नेत्री को अपना प्रत्याशी बनाया है जबकि भाजपा भय, संशय एवं अवसाद से ग्रस्त छवि के साथ मंत्रियों-पूर्णकालिकों की फौज के साथ जोगी ब्रिगेड की याद ताजा करा रही है। सांसद दलपत सिंह परस्ते के आकस्मिक निधन के बाद भाजपा के कब्जे वाली शहडोल सीट पर सत्तारूढ़ दल का स्वाभाविक मजबूत दावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अतिरेक भय, नेताओं के गंदे आचरण, अवैध कारनामों एवं गुटबाजी का शिकार बन गया। 

मुख्यमंत्री की एक के बाद एक तीन-चार दिवसीय तीन प्रवासों ने शहडोल उपचुनाव को लेकर उनके भय को सार्वजनिक कर दिया। शहडोल, उमरिया, अनूपपुर जिले के सभी विधानसभाओं में मंत्रियों को बैठाकर उन्होंने लोगों की समस्याओं को दूर कर जीत सुनिश्चित करने का दांव चला, जो कहीं सही तो कहीं गलत साबित होता दिख रहा है। नामांकन तिथि से एक दिन पूर्व कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. दलवीर सिंह एवं पिछले चुनाव में दलपत सिंह से पराजित श्रीमती राजेश नंदिनी सिंह की पुत्री सुश्री हेमाद्री सिंह को प्रत्याशी बनाकर भाजपा के समक्ष कडी चुनौती प्रस्तुत की है।  

माना जा रहा है कि भाजपा इसकी काट के लिए पुष्पराजगढ़ के पूर्व विधायक सुदामा सिंह सिंग्राम एवं केबिनेट मंत्री ज्ञान सिंह-आयोग अध्यक्ष नरेंद्र मराबी में से एक चेहरा सामने ला सकती है। बुधवार की दोपहर तक सोशल मीडिया में जिस तरह से ज्ञान सिंह को प्रत्याशी बनाये जाने की अपुष्ट दावेदारी की जाने लगी, भाजपा के समक्ष कांग्रेस की चुनौती और भी तगडी होती दिखी। पार्टी के भोपाल स्थित सूत्रों ने प्रत्याशी के नाम की घोषणा होने या किसी भी ऐसे तथ्य की पुष्टि करने से साफ इंकार कर दिया लेकिन कयास यह लगाये जाने लगे कि मति भ्रम होने-गुटबाजी के कारण खींच-तान होने के कारण कांग्रेस के ऊर्जावान-उत्साही चेहरे के समक्ष भाजपा द्वारा किसी बूढे थके चेहरे पर दांव लगाना भारी पड़ सकता है। पुष्पराजगढ़, बांधवगढ़, जयसिंह नगर बडे विधानसभा क्षेत्र माने जाते हैं। 

सांसद पद को लेकर पुष्पराजगढ़ क्षेत्र में आश्चर्यजनक रूप से एकजुटता देखी जाती रही है। भाजपा के लिए अच्छा यह होता कि वह भी पुष्पराजगढ से अपना प्रत्याशी घोषित करती। तब कांग्रेस को पुष्पराजगढ़ में घेर कर निचले मैदानी क्षेत्रों में भाजपा को बढ़त मिल सकती थी।  नौरोजाबाद के ज्ञान सिंह की छवि ब्राम्हण विरोधी, निष्क्रिय नेता के रूप में है और आम तौर पर उन्हें चुका हुआ नेता माना जाता है, जो सायं 7 बजे के बाद अपनी ही दुनिया में खो जाते हैं। 

पुजारी वाला मैटर ब्राम्हण समाज को आज भी क्रोधित किए हुए है। अजजा समाज को धर्मांतरण से रोकने की आड में समाज को जिस दुर्भावनागत खाई में धकेल दिया गया, अजाक्स के सामने सपाक्स को लाकर अंग्रेजों की फूट डालो शासन करो की नीति प्रदेश में लागू होते लोगों ने देखा। एक अनिर्णायक मंत्री के साथ इस योजना में मुख्यमंत्री भी कंधे से कंधा मिलाकर चलते दिखे, जब उनका माई का लाल वाला बयान सामने आया और जब तक लोग इसे भूल पाते, प्रत्येक पेशी वकील को १५ लाख रूपये की फीस वाली सूचना ने लोगों को फिर से आग बबूला कर दिया।  उपचुनाव की घोषणा से पहले मंत्रियों के नित प्रति दौरों से प्रशासन न केवल परेशान रहा, जनता का कितना भला हुआ कहा नहीं जा सकता। तीन माह के भीतर अनूपपुर के दो कलेक्टरों, एक एसपी का स्थानांतरण भी समझ से परे माना गया। 

जिस तरह से प्रत्याशी चयन से पूर्व गांव-गांव मंत्रियों, नेताओं, पूर्णकालिकों के दौरे होने लगे लोगों को क्षेत्र में बाहरी लोगों की फौज देखकर जोगी ब्रिगेड की याद ताजा हो गई। बहरहाल यह पोस्ट लिखे जाने तक भाजपा  ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। इसके बावजूद आम जनता यह टिप्पणी करते देखी जा रही है कि बूढे घोडे की सवारी भाजपा को भारी पड सकती है। 

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