564 साल से मुराद पूरी कर रही है नगरी माता, हुए हैं कई चमत्कार

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रंकेश वैष्णव/बड़वानी।  नगरी माता मंदिर में रविवार शाम को भक्तो ने माताजी का 564 वा स्थापना दिवस भक्ति भाव के साथ मनाया। माताजी के पिंड की स्थापना के 564 साल पूर्ण होने पर हजारो भक्तो ने रविवार शाम को जमकर आतिशबाजी कर महाआरती की व प्रसादी का वितरण किया गया।

इन दिनों अंजड़ का नागरी माता का मन्दिर अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है। पूरी पहाड़ी को रंगबिरंगी आकर्षक विद्युत सज्जा एवं भगवा ध्वजो के साथ सजाया गया है जो सबका मन मोह रहा है श्रद्धालु एक बार पहाड़ी पर जाने के बाद वापस आने का नाम नहीं लेता इन दिनों हजारो श्रद्धालु माताजी के दर्शन करने पहाड़ी पर पहुच रहे है वही सुबह शाम माताजी की महाआरती नित नए श्रृंगार, अलग-अलग प्रसादी का वितरण, गरबा रास, नवचण्डी पाठ आदि आयोजन सम्पन्न किये जा रहे है। माँ नगरी माता नगर के मध्य सतपुड़ा की पहाड़ी पर लगभग 250 फिट की ऊँचाई पर स्थित है जो यहाँ साक्षात रूप में विराजमान है माताजी का इतिहास बहुत ही प्राचीन है व कई चमत्कारो से भरा पड़ा है। 563 साल प्राचीन माताजी के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई हर मन्नत पूर्ण होती है। यहा मन्नत मांगने वाले भक्त दूर दराज से कई किलोमीटर दूर से पैदल चल कर आते है।

अंजड़ के मध्य सतपुड़ा पर्वत के शिखर पर विराजमान नगरी माता के नाम से विख्यात नगुबाई माताजी देशभर में प्रिसद्ध है। इस मन्दिर की स्थापना 563 साल पहले एक जागीरदार ने की थी। मन्दिर में नगुबाई माताजी विराजमान है जिसे वर्तमान में नगरी माता के नाम से जाना जाता है। अंजड़ का सोनापलोत तंवर राजपूत समाज माता को अपनी कुल देवी के रूप में पूजता है।

रातोरात स्थापित हुआ था माताजी का पिंड
इस मन्दिर में माता के पिंड की स्थापना रातोरात हुई थी। माता के इतिहास को जानने वाले समाजजनों की माने तो पहाड़ी के शिखर पर जागीरदार के पुत्र को एक सांप ने डांस लिया था, जो की पशुओ को चराने आया था। जागीरदार ने आस-पास के झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं व आयुर्वेद का इलाज करने वालो को इकट्ठा कर लिया था लेकिन उसके पुत्र जान नही बचाई जा सकी, जागीरदार इस सदमे को सहन नही कर पाया और वह मूर्छित हो गया। तभी नगुमाताजी की ज्योत प्रकट हुई और जागीरदार से कहा की इस शिखर पर मेरे मन्दिर की स्थापना करवा दे तो तेरा पुत्र फिर से जीवित हो जाएगा, इस पर जागीरदार ने रातोरात माताजी के पिंड की स्थापना करवा दी, जिससे उसका पुत्र जीवित हो उठा।

माता ने दिखाए कई चमत्कार
बताया जाता है की नगुमाता (नगरी माता) का एक मन्दिर नर्मदा पार धार जिले के सुसारी गाँव में भी स्थापित है। प्राचीनकाल में अंजड़ में नगुमाता की स्थापना के बाद माताजी का पिंड रात में कुक्षी के पास बसे ग्राम सुसारी चला जाता था, तो कुछ लोगो ने उसी स्थान पर मातारानी के मन्दिर की स्थापना की जिसे नगुबाई बड़ी माता का नाम दिया गया जो वर्तमान में नागेश्वरी देवी के नाम से विख्यात है। चर्चानुसार एक बार रियासतकाल के समय वीर क्रांतिकारी शहीद भीमा नायक ने लूट-पाट के इरादे से अंजड़ नगर पर हमला बोल दिया था, तो नगु माताजी नगर की रक्षा करते हुए भीमा नायक पर आग के गोले बरसाए जिससे भीमा नायक की दोनों आखो की रौशनी चली गई । हालांकि भीमा नायक का उद्देश्य राष्ट्र हित था जिसके चलते भीमा नायक ने माताजी के दरबार में जाकर क्षमा याचना की तो माताजी ने भीमा नायक की आँखो की रौशनी वापस दे दी, उसके बाद भीमा नायक कभी भी अंजड़ की तरफ नही आये। तभी से माताजी को नगर की माता यानी नगरी माता कह कर पुकारने लगे।

बहार नहीं आता प्रसाद
पहाड़ी पर माताजी के दो मन्दिर है बड़ी माता को भक्त इन्जुमाता व छोटी माता को नगुमाता से पुकारते है। बड़ी माता को चढ़ाया गया प्रसाद मंदिर के अंदर ही खाने का नियम है प्रसाद को बहार नहीं ले जा सकते है।

बाबा शंकर प्रसाद शर्मा ने यज्ञ की करी शुरुआत
नगर के बुजुर्गो ने बताया की संत शंकरदास जी महाराज 18 वर्ष की आयु में पधारे व पहाड़ी पर कुटिया बना कर रहने लगे वे भोलेनाथ व नगरी माता के परम् भक्त थे व माँ नगरी माता की भक्ति में हमेशा लीन रहते थे उन्होंने ने ही पूजा-अर्चना व हवन की शुरुआत करी व मंदिर की देख रेख शुरू की थी। अब राजपूत समाज के लोग मंदिर की देख रेख करते है। उनकी इच्छानुसार ही उनकी समाधि पहाड़ी पर बनाई गई जो आज भी मौजूद है।

मातारानी सबकी भरती है झोली
नागरिमाता की आस्था, श्रद्धा और विश्वास के साथ मानी गई हर मन्नत को पूरा करती है माताजी के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता।
पहाड़ी पर नगरी माता मंदिर के अलावा सरस्वती माता, भोलेनाथ व दक्षिण मुखी हनुमानजी का मंदिर स्थापित है इसके अलावा 50×80 वर्गफीट में विशाल बगीचा उसमे भगवान शिव की तांडव नृत्य करते हुए विशाल प्रतिमा, रंग बिरंगी लाइट व फव्वारे लगे है व इसी तरह दुसरा दुसरा बगीचा भी बन कर तैयार हो चूका है। ऊपर जाने पर पर्यटन स्थल का आभास होता है। व माताजी की प्रतिदिन अलग-अलग रूपो में नित नए शृंगार किये जा रहे है।
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