सरकार की आलोचना नैसर्गिक अधिकार

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सर्वोच्च अदालत ने इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले राजद्रोह कानून के मसले पर पुलिस सहित सभी बड़े अधिकारियों को स्पष्ट कर दिया है कि अगर कोई नागरिक सरकार और उसकी नीतियों की कड़ी से कड़ी भी आलोचना करता है कि तो उसके विरुद्ध न तो राजद्रोह और न ही मानहानि का मुकदमा चलाया जा सकता है।न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व यू ललित की खंडपीठ ने गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की ओर से भारतीय दंड संहिता की धारा 124 अ के दुरुपयोग को रोकने के संदर्भ में दाखिल एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है।

इसी धारा के तहत किसी व्यक्ति पर राजद्रोह मामला चलाये जाने का प्रावधान है. हालांकि खंडपीठ ने याचिका की मांग के मुताबिक नई व्यवस्था देने से इनकार किया और उसके बजाय 54 साल पहले 1962 में केदरानाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मुकदमे में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के दिशा-निर्देशों का उल्लेख किया, जिसके तहत किसी भी नागरिक को सरकार की तीखी से तीखी आलोचना करने का हक दिया गया है। कोई व्यक्ति जब तक कानून सम्मत तरीके से प्रतिक्रिया देता है और लोकप्रिय सरकार के विरुद्ध लोगों को हिंसा के लिए भड़काता नहीं या इरादतन समाज में शांति-व्यवस्था भंग नहीं करता; तब तक वह राजद्रोह का दोषी नहीं है। शीर्ष अदालत का यह स्पष्टीकरण ऐसे समय आया है जबकि देश में इस पर अमल के औचित्य-अनौचित्य पर तीखे मतभेद हैं। 

गौरतलब है कि तमाम प्रचलित शासन प्रणालियों में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्य इसलिए सर्वश्रेष्ठ और सर्वमान्य हैं कि इस व्यवस्था में लोगों को सभी नैसर्गिक अधिकार प्राप्त हैं, जिनमें सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना का हक भी शामिल हैं।

दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षो के दौरान अंध राष्ट्रवादी समर्थक शक्तियों ने देश में ऐसा माहौल बनाया है कि सरकारें और पुलिस इनके दबाव में या अपने हितों के विरुद्ध खड़े होने वाले नागरिकों की छोटी सी छोटी आलोचनाओं को दबाने के लिए राजद्रोह कानून का दुरुपयोग करने लगी हैं। कॉमन कॉज ने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि 2014 में राजद्रोह के 46 मामले दर्ज हुए, जिनमें 58 व्यक्ति गिरफ्तार किये गए।

हालांकि इसके उपयोग या दुरुपयोग के मामले दल निरपेक्ष हैं. बिहार समेत कई सूबे इसमें पीछे नहीं हैं. ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि शीर्ष अदालत के स्पष्टीकरण के बाद ऐसे मामलों में कमी आएगी. अंध-राष्ट्रवाद समर्थक शक्तियां, सरकारें और पुलिस भी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का सही पाठ पढ़ जाएंगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !