क्या चौधरी चरण सिंह की राह पर चल रहे हैं राहुल गांधी

Bhopal Samachar
उपदेश अवस्थी। राहुल गांधी इन दिनों यूपी की किसान यात्रा पर हैं। वो 2500 किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं। किसानों के बीच जा रहे हैं। खाट पंचायत हो रही है। दलितों के यहां भोजन किया जा रहा है। आसपास किसानों का हुजूम भी दिख रहा है लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी के आसपास खड़ा हो रहा किसानों का हुजूम वोट में बदल पाएगा। क्या वो 27 साल बाद यूपी में कांग्रेस को सत्ता तक ले जा पाएंगे और सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या ये यात्राएं केवल यूपी में सत्ता हासिल करने तक के लिए ही हैं या फिर राहुल गांधी, चौधरी चरण सिंह की लाइन पर आगे बढ़ रहे हैं। 

आइए बात करते हैं चौधरी चरण सिंह की
भारत की आजादी के बाद देश की राजनीति में चौधरी चरण का सिंह नाम कद्दावर किसान नेता, समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी के तौर लिया जाता है। देश की सियासी मिजाज बदला, वक्त बदला तो उन्हें जाट नेता के तौर पर भी पुकारा जाने लगा लेकिन सच्चाई यह भी है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज भी उनके नाम पर राजनीति की जाती है। 

1970-80 के दशक में चौधरी चरण सिंह ने देश को हिला देने वाली किसान यात्रा की थी। चरण सिंह के बस एक अपील पर दिल्ली के राजपथ पर किसानों का हुजूम उमड़ पड़ा था। सभी किसान हाथ में थाली और लाठी लेकर राजपथ पर जमा हो गए थे। चरण सिंह के शक्ति प्रदर्शन ने तत्कालीन केंद्र सरकार को तक भी हिला दिया था। बाद में चरण सिंह को इसका सियासी फायदा भी मिला और वे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे।

इतिहास में दर्ज कुछ महत्वपूर्ण किसान यात्राएं 
चौधरी देवीलाल अक्सर कहा करते थे कि भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुजरता है। यह देवीलाल की ताकत और आंदोलन का नतीजा था कि 1 नवंबर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया। 23 दिसंबर 1978 को चौ. चरण सिंह के जन्मदिवस पर देवीलाल ने अभूतपूर्व किसान रैली का आयोजन किया था। इसी वजह से देवीलाल का कद राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरा और उन्होंने सभी विपक्षी दलों को एकजुट करते हुए जनता दल का गठन किया। यह बाद 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा बना और फिर राजीव गांधी को सत्ता से हटाकर वीपी सिंह की अगुवाई में नई सरकार बनी थी।

चरण सिंह और देवीलाल के अलावा कुछ और किसान यात्रा ने देश के दिलो-दिमाग को बदल दिया। मसलन, सर छोटू राम की अविभाजित पंजाब में, पंजाबराव देशमुख की महाराष्ट्र में, बलदेव राम मिर्धा की राजस्थान में और एमडी नंदनस्वामी की आंध्र प्रदेश में किसान यात्रा बेहद चर्चित रही और इसने राज्यों में जबर्दस्त असर डाला।

राहुल गांधी की यात्राओं में उमड़ रहा हुजूम इन तमाम एतिहासिक यात्राओं की याद दिला रहा है परंतु सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी इस यात्रा को देर तक भुना पाएंगे। कहीं ऐसा तो नहीं कि यूपी में मतदान की बेला आते आते यात्रा का असर ही खत्म हो जाएगा। क्या राहुल गांधी के मैनेजर्स के पास कोई फालोअप प्लान है या फिर यात्रा के बाद फिर से राहुल गांधी को विचारधारा विशेष के बीच चुटकुला बनने के लिए छोड़ दिया जाएगा। 
लेखक मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का युवा पत्रकार है। 
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