ये है बालाघाट में संघ प्रचारक पर हमले का दूसरा सच

भोपाल। बालाघाट में संघ प्रचारक सुरेश यादव पर टीआई जियाउल हक और पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई मारपीट देश भर में सुर्खियां बन गई है। इस मामले में एडिशनल एसपी राजेश शर्मा, टीआई जियाउल हक समेत कई अधिकारियों को संस्पेंड कर दिया गया। उनके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया। मामले को कुछ इस तरह प्रस्तुत किया गया, मानो टीआई जियाउल हक ने मुसलमान होने के कारण यह हमला किया, लेकिन बवंडर के बाद जो घटनाक्रम सामने आ रहा है वह कुछ और ही बयां कर रहा है। टीआई जियाउल हक के बारे में भी जो जानकारियां उनके साथी और संघ की विचारधारा से प्रभावित पुलिस अधिकारी दे रहे हैं, वह भी प्रस्तुत किए गए घटनाक्रम के बिल्कुल उलट हैं। आइए क्रमबद्ध तरीके से देखते हैं, उस दिन क्या क्या हुआ ? 

आरएसएस के जिला प्रचारक सुरेश यादव ने वाट्सएप ग्रुप पर औवेसी के खिलाफ नहीं बल्कि औवेसी के बहाने धर्म विशेष के खिलाफ कुछ इस तरह की टिप्पणी की, जो हर हाल में 'भड़काऊ' कही जा सकती है। चाहें तो सुरेश यादव का मोबाइल जब्त कर, उसकी तकनीकी जांच करा लें। 

एक व्यक्ति जावेद खान एवं अन्य ने सुरेश यादव के खिलाफ 'धार्मिक भावनाएं भड़काने' की शिकायत की। शिकायत बैहर थाने में प्रस्तुत की गई। 

टीआई जियाउल हक को मालूम था कि वो मुसलमान हैं एवं यदि कानून सम्मत कार्रवाई भी करेंगे तो मामला साम्प्रदायिक हो जाएगा अत: उन्होंने पूरी एहतियात बरती और शिकायत के संदर्भ में वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराया गया। 

वरिष्ठ अधिकारियों ने नियमानुसार कार्रवाई करने के निर्देश दिए। अत: प्रचारक सुरेश यादव के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। जो शांति बनाए रखने के लिए आवश्यक भी था। अधिकारियों ने सुरेश यादव को गिरफ्तार करने के आदेश दिए, परंतु टीआई जियाउल हक ने मामले में वरिष्ठ स्तर के अधिकारी की मदद मांगी, क्योंकि यदि वो टीम को लीड करते तो फिर साम्प्रदायिकता के आरोप लग जाते। 

वरिष्ठ अधिकारियों ने जियाउल हक की भावनाओं को समझा और एडिशनल एसपी राजेश शर्मा को टीम का नेतृत्व करने के लिए भेजा। थाने का टीआई होने के कारण जियाउल हक को साथ जाना पड़ा। 

पुलिस ने जिला प्रचारक सुरेश यादव को गिरफ्तार किया और थाने ले आई। यहां तक कोई बवाल नहीं हुआ। गिरफ्तारी के वक्त मौजूद संघ कार्यकर्ताओं को मालूम था कि सुरेश यादव की पोस्ट काफी भड़काऊ है। इसलिए मौके पर किसी ने विरोध नहीं किया। 

पुलिस सूत्रों का दावा है कि थाने में आने के बाद सुरेश यादव ने पुलिस को गंदी गंदी गालियां दीं और सत्ता में होने के कारण कई प्रकार की धमकियां भी दीं। पुलिस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, बल्कि गिरफ्तारी की कागजी कार्रवाई शुरू कर दी। 

इस बीच प्रचारक सुरेश यादव जिन्हे थाने में बंधक बनाकर नहीं रखा गया था, थाने से भाग गए और समाने स्थित एक मेडिकल स्टोर में घुस गए। इसी दौरान उन्हें कुछ चोटें भी लगीं। कुछ पुलिसकर्मी सुरेश यादव के पीछे भागे। उन्हे वापस पकड़ने के दौरान हाथापाई भी हुई और पुलिस ने हल्का बल प्रयोग करते हुए थाने से भागे सुरेश यादव को फिर से काबू कर लिया। 

थाने में सारी रात सुरेश यादव एवं उनके समर्थक पुलिस को गंदी गंदी गालियां देते रहे और जियाउल हक को टारगेट करके धार्मिक भावनाएं भड़काने वाले बयान देते रहे, नारे लगाए गए। मामला यहां भी दर्ज किया जाना चाहिए था परंतु ​नहीं किया गया। 

सुबह होते ही एक नया घटनाक्रम शुरू हो गया। टीआई जियाउल हक समेत तमाम पुलिस अधिकारियों पर खुले आरोप लगाए गए और राजनीति का दखल होते ही बवंडर ऐसा उठा जैसे सुरेश यादव के खिलाफ की गई कार्रवाई गलत थी। 

कौन है टीआई जियाउल हक
टीआई जियाउल हक के ऊपर साम्प्रदायिक उत्पीड़न का राजनैतिक आरोप लगाया गया है परंतु उसके साथ ट्रेनिंग में रहे पुलिस अफसर बताते हैं कि उसका व्यवहार इस तरह का कतई नहीं था। बल्कि वो तो गणेशोत्सव में भी उत्साह के साथ भाग लेता था। जियाउल हक मप्र पुलिस का एक गंभीर और समझदार अधिकारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों सम्मानित हो चुका है। उसके तमाम साथी पुलिस अधिकारी उसकी तारीफ कर रहे हैं। इनमें वो अधिकारी भी शामिल हैं जो संघ की विचारधारा से प्रेरित हैं और भाजपा की सरकार को अच्छी सरकार मानते हैं। 

इस मामले ने पुलिस विभाग को आंदोलित कर दिया है। सूझबूझ के साथ की गई एक संतुलित कार्रवाई को इस तरह का राजनैतिक रंग दिया जाना और उसके बाद दवाब में आकर अच्छे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या के प्रयास जैसा मामला दर्ज हो जाना, पुलिस कर्मचारियों को कतई स्वीकार्य नहीं हो रहा है। एक अधिकारी ने भोपाल समाचार से कहा कि यदि अनुशासन में ना बंधे होते तो आज पूरा पुलिस विभाग सड़कों पर होता और सरकार की नींव हिला दी गई होती। पुलिस कर्मचारी तो अनुशासन में बंधे होने के कारण चुप हैं परंतु उनके परिवारजन और निकट मित्र सोशल मीडिया पर सारा सच बयां कर रहे हैं। 

विषय सिर्फ इतना है कि औवेसी के नाम पर जियाउल हक को तंग किया जाना उचित नहीं कहा जा सकता। यदि हालात ऐसे ही रहे तो मप्र की स्थिति भी यूपी और बिहार जैसी हो जाएगी। संघ को चाहिए कि वो अपने कट्टरवादी प्रचारकों पर लगाम लगाए और कानून का सम्मान करे। लोकतंत्र में सत्ता का अर्थ तानाशाह हो जाना नहीं हो सकता। 
पूरी खबर पुलिस अधिकारियों एवं बालाघाट में बंट रहे पर्चों पर आधारित। 

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