शिवराज सरकार अब संस्कृत विरोधी भी हो गई, स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे संस्कृत

Bhopal Samachar
भोपाल। उर्दू और अंग्रेजी माध्यम से स्कूलों को कई तरह के विशेष लाभ देने वाली शिवराज सरकार ने भारत की प्राचीन 'संस्कृत' भाषा के खिलाफ फैसला ले लिया है। स्कूलों के पाठ्यक्रमों में संस्कृत को एक वैकल्पिक भाषा का दर्जा दे दिया गया है। भाजपा की सरकार में संस्कृत विरोधी फैसले की उम्मीद किसी को नहीं थी। अब संस्कृत शिक्षकों और पंडितों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

मध्यप्रदेश सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया है। जिसमें नवमीं और दसवीं में संस्कृत (तृतीय भाषा) की जगह वैकल्पिक विषय बना दिया गया है। अब छात्र चाहें तो संस्कृत की जगह वोकेशनल पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकेंगे। वहीं 11 वीं और 12 वीं में अंग्रेजी (द्वितीय भाषा) को वैकल्पिक कर दिया गया है। 

फैसले के बाद ये बदलाव होंगे
अब तक मध्यप्रदेश के स्कूलों में संस्कृत भाषा छठीं से दसवीं कक्षा तक अनिवार्य थी, लेकिन 10 अगस्त 2016 को जारी मध्यप्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग के उप सचिव के जारी आदेश के अनुसार संस्कृत को वैकल्पिक कर व्यावसायिक शिक्षा को जोड़ दिया गया है। सरकार के इस फैसले से इसी शैक्षणिक सत्र में प्रदेश के 313 एक्सीलेंस स्कूल में संस्कृत भाषा वैकल्पिक हो चुकी है। स्कूली छात्र संस्कृत को छोडकर अब व्यावसायिक विषय ले रहे हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ संस्कृत शिक्षक और पंडित और विद्वान नाराज हो गए हैं।

संस्कृत भाषा को समाप्त करने पर तुले हैं शिवराज
पंडित, संस्कृत विद्वान और संस्कृत शिक्षक शिवराज सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि मध्यप्रदेश शासन के अधिकारी धीरे-धीरे प्रदेश के हजारों स्कूलों से संस्कृत भाषा को समाप्त करने और उसके समग्र उन्मूलन (उखाड फेंकने) में जुट गए हैं। 

विरोध दर्ज कराने को छिड़ा अभियान
पंडित धर्मेन्द्र शास्त्री कहते हैं कि तृतीय भाषा संस्कृत को हटाकर व्यावसायिक कोर्स लागू करना प्राचीन भारतीय संस्कृति को शिक्षा से दूर करना है। उनका कहा है कि प्रदेश और देश के समस्त संस्कृत प्रेमी इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। संस्कृत के विद्वान ट्वीटर, फेसबुक और सोशल मीडिया पर सरकार के फैसले का विरोध तेज कर दिया है। वहीं संस्कृत प्रेमी CM Help Line Number 181 पर Call करके भी अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।
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