कटनी जमीन घोटाले में NHAI चेयरमैन आरोपी बनाए गए

भोपाल। नेशनल हाइवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया के चेयरमैन एवं मप्र के सीनियर आईएएस अफसर राघव चन्द्रा को मप्र के कटनी जिले में हुए जमीन घोटाले में आरोपी बनाया गया है। यह घोटाला सन् 2000 में हुआ था। तब श्री चंद्रा एमपी हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर हुआ करते थे। 

गुरुवार को जबलपुर में मप्र हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन और जस्टिस अनुराग श्रीवास्तव की युगलपीठ ने मामले में राघव चंद्रा को पक्षकार बनाए जाने की अनुमति दी। साथ ही यह भी कहा कि ईओडब्ल्यू की जांच रिपोर्ट पर आगे क्या कार्रवाई की जाए, यह अगली सुनवाई पर तय किया जाएगा।

हाईकोर्ट में यह मामला कटनी के अरविंद कुमार वर्मा व अन्य की ओर से वर्ष 2003 में दायर किया गया था। आवेदकों का कहना है कि कटनी में आवासीय योजना के तहत कॉलोनी बनाने के लिए निविदाएं बुलायी गई थीं। उसमें कोलकाता की अलफर्ट्स कंपनी ने 10 लाख रुपए प्रति एकड़ से भूमि उपलब्ध कराने का प्रस्ताव दिया, जो मप्र गृह निर्माण मंडल ने स्वीकार कर लिया था। 

याचिका में आरोप है कि उक्त ऑफर बाजार मूल्य से 10 गुना अधिक था, इसके बाद भी कंपनी को फायदा पहुंचाया गया। इसको लेकर कटनी के तत्कालीन कलेक्टर शहजाद खान ने आपत्ति भी की, लेकिन कंपनी को 4 करोड़ 95 लाख रुपयों का भुगतान भी कर दिया गया। इन मामलों पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस आरवी रविन्द्रन और जस्टिस केके लाहोटी की बैंच ने 7 सितंबर 2005 को पूरे घोटाले की जांच के आदेश राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को देकर 4 माह में रिपोर्ट पेश करने कहा था। 

हाईकोर्ट के आदेश पर ईओडब्ल्यू के तत्कालीन महानिदेशक एआर पवार ने 2 जून 2006 को हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में पेश कर दी थी। गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मोहम्मद अली, खालिद नूर फखरुद्दीन, राज्य सरकार की ओर से उपमहाधिवक्ता समदर्शी तिवारी, मप्र हाउसिंग बोर्ड की ओर से अधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव, निजी अनावेदक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता किशोर श्रीवास्तव और राघव चंद्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजेन्द्र तिवारी, अधिवक्ता मनीष वर्मा हाजिर हुए। सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने राघव चंद्रा को पक्षकार बनाए जाने की अनुमति देकर मामला 23 अगस्त तक के लिए मुल्तवी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट​ से लौटा मामला
हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ कोलकाता की अलफर्ट्स कंपनी व अन्य की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कुल 3 मामले दायर हुए थे। ईओडब्ल्यू की सीलबंद लिफाफे में पेश रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट को रिकार्ड के साथ भेज दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट​ ने 7 मई 2015 को कहा था कि हाईकोर्ट ही इस मामले पर सुनवाई करे।
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