उत्पात रोकने के लिए समाज का आगे आना जरूरी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। गौ रक्षा के नाम उत्पात से पैदा हुई इस समस्या के कई सियासी नतीजे हो सकते हैं| गुजरात को अपनी प्रयोगशाला कहने वाले संघ परिवार और भाजपा इसकी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते| हाल ही में संघ द्वरा गुजरात में कराए गये सर्वे में भाजपा की सीटें कम हुई हैं |

बहरहाल, ये घटनाएं निश्चित रूप से जाहिर करती हैं कि समाज में वर्षो से कायम जातिगत भावनाएं तमाम कोशिशों के बावजूद न सिर्फ बनी हुई है, बल्कि मौजूदा समय में उग्र हुई हैं|इसकी वजहें कई हो सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ी वजह शायद देश में करीब 25 फीसद दलित या अनुसूचित जातियों में अपने अधिकारों के प्रति बढ़ती जागरूकता है|  इससे परंपरागत दबंग जातियों में अपने विशेषाधिकारों के छिनने से गुस्सा उपज रहा हो सकता है|

आजादी के सात दशक बाद भी देश में तीन-चौथाई से ज्यादा दलित गांवों में बसते हैं| जिनमें हाल के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के मुताबिक 84 फीसद की औसत मासिक आय 5,000 रुपये से  कम है| भाजपा के लिए दलित नाराजगी खासा चिंता का विषय हो गया है; क्योंकि उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और मध्य प्रदेश में उनकी अच्छी-खासी संख्या है, जहां वे हाल के दिनों में अपनी राजनैतिक जागरूकता से चुनाव को प्रभावित करने लगे हैं|इसी वजह से हर दल उन पर डोरे डालने की कोशिश करता है|

2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा की कामयाबी में दलित वोटों की हिस्सेदारी काफी अहम थी. अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित कुल 84 लोस सीटों में भाजपा ने 40 पर जीत हासिल की जिनमें उत्तर प्रदेश की सभी 17 सीटें शामिल थीं| यही नहीं, 2014 के बाद से भाजपा ने जिन राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में अकेले या गठजोड़ सरकार बनाई, वहां कुल 70 आरक्षित सीटों में से उसने 41 पर जीत दर्ज की|
दूसरा पहलु यह भी है कि 2014 में जिस साल भाजपा केंद्रीय सत्ता में आई, देश में दलितों के खिलाफ  47,064 अपराध दर्ज किए गए.| यह 2010 के मुकाबले 44 फीसद ज्यादा है., भाजपा शासित चार राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और हरियाणा में दलितों के खिलाफ  कुल अपराधों में हिस्सेदारी 30 फीसद की है| इसलिए भाजपा के लिए इसका हल निकालना उसकी आगे की सियासत के लिए भी जरूरी है|

भाजपा की जो भी मजबूरी हो और अन्य दल इस तबके को वोट बैंक मानता हो, देश को सामाजिक समरसता और संतुलन की जरूरत है | इसकी पहल सारे समाज को एक साथ करना चाहिए |
 श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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