
मामला पशु चिकित्सा व्यवस्थाओं की नाकामी का है। इस गांव में 25 से 30 मवेशियों की मौत हो चुकी है। सरकारी ढर्रा सब जानते हैं इसलिए अब उम्मीद भी छोड़ दी। गांववाले इस समस्या के निदान के लिए भगतजी के पास पहुंचे। भगतजी की सलाह पर पंचायत ने गांव में तेल-मसाले के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया। अब हालत यह है कि गांव में बच्चों सहित सभी ग्रामीणों को बिना तेल-मसाले का भोजन करना पड़ रहा है।
कोई मांस-मछली भी नहीं खा पा रहा। यहां तक कि गांव के स्कूल में मध्याह्न भोजन में भी पंचायत के आदेश के बाद तेल-मसाले का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। बच्चों का कहना है कि उन्हें खाने में बिल्कुल भी स्वाद नहीं आता।
भूख लगने के बाद भी खाने की इच्छा नहीं होती, पर गांव के पंचायत व भगत की मानें तो गांव के पशुओं की मौत रोकने का यही एक तरीका है। गांव के लोग रोटी और भूने हुए आलू और पिसी हुई मिर्ची की चटनी खा कर गुजारा कर रहे हैं। इस गांव की आबादी आठ सौ है।