भोपाल के महान सपूत को भूल गया मध्यप्रदेश

भोपाल। राजनीति की ये कैसी विडंबना है जहां योग्यता की कोई कीमत ही नहीं रह गई। सबकुछ वोट के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है। आज 19 अगस्त को भोपाल के सपूत, भोपाल के पहले मुख्यमंत्री, इंदिरा गांधी की सरकार में कई महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले केबिनेट मंत्री, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा का जन्मदिवस था। मप्र सरकार ने एक औपचारिक पुष्‍पांजलि तक आयोजित नहीं की। जिस कांग्रेस को मप्र में स्थापित करने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया, उसी कांग्रेस ने भी उन्हें बिसरा दिया। यदि वो दलित होते तो शायद आज कई बड़े कार्यक्रम आयोजित होते, परंतु वो तो ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। अत: उनकी तमाम योग्यताएं और जीवन का समर्पण भुला दिया गया। 

दुखद प्रसंग तो यह भी है कि मप्र के ब्राह्मण समाज ने भी उन्हें याद नहीं किया। सोशल मीडिया पर दिनभर ब्राह्मणवाद की दहाड़ मारने वाले नेताओं को शायद डॉ शंकरदयाल शर्मा याद ही नहीं। वो एक महान पत्रकार भी थे परंतु मध्यप्रदेश के पत्रकारों ने भी उन्हें याद नहीं किया। सरकार की हर छोटी बड़ी कार्रवाई में मीनमेख निकालने वाला पत्रकार समाज, अपने वरिष्ठ दिवंगत साथी को भूल गया। 

चलिए अपन याद करते हैं 
डॉ शंकरदयाल शर्मा भारत के नवें राष्ट्रपति थे। इनका कार्यकाल 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997 तक रहा। राष्ट्रपति बनने से पूर्व आप भारत के आठवे उपराष्ट्रपति भी थे, आप भोपाल राज्य (मध्यप्रदेश के गठन से पूर्व) के मुख्यमंत्री (1952-1956) रहे तथा मध्यप्रदेश राज्य में कैबिनेट स्तर के मंत्री के रूप में उन्होंने शिक्षा, विधि, सार्वजनिक निर्माण कार्य, उद्योग तथा वाणिज्य मंत्रालय का कामकाज संभाला था। केंद्र सरकार में वे संचार मंत्री के रूप में (1974-1977) पदभार संभाला। इस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (1972-1974) भी रहे।

भोपाल के मुख्यमंत्री बने 
1940 के दशक में वे भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल हो गए, इस हेतु उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली, 1952 में भोपाल के मुख्यमंत्री बन गए, इस पद पर 1956 तक रहे जब भोपाल का विलय अन्य राज्यों में कर मध्यप्रदेश की रचना हुई।

इंदिरा गांधी की मदद की
1960 के दशक में उन्होंने इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व प्राप्त करने में सहायता दी। इंदिरा कैबिनेट में वे संचार मंत्री (1974-1977) रहे, 1971 तथा 1980 में उन्होंने भोपाल से लोक सभा की सीट जीती, इसके बाद उन्होंने कई भूष्णात्मक पदों पर कार्य किया। 

बेटी और दामाद दंगों में मारे गए 
1984 से वे राज्यपाल के रूप में आंध्रप्रदेश में नियुक्ति के दौरान दिल्ली में उनकी पुत्री गीतांजली तथा दामाद ललित माकन की हत्या सिख चरमपंथियों ने कर दी थी, 1985 से 1986 तक वे पंजाब के राज्यपाल रहे, अन्तिम राज्यपाल दायित्व उन्होंने 1986 से 1987 तक महाराष्ट्र में निभाया। इसके बाद उन्हें उप राष्ट्रपति तथा राज्य सभा के सभापति के रूप में चुन लिया गया गया इस पद पर वे 1992 में राष्ट्रपति बनने तक रहे। उनकी मृत्यु 5 साल लंबी बीमारी के बाद 26 दिसम्बर 1999 को हुई थी। 

इतनी डिग्रियां थीं कि दीवार भर जाए
डॉक्टर शर्मा ने सेंट जान्स कॉलेज आगरा, आगरा कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, फित्ज़विल्यम कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, लिंकोन इन् तथा हारवर्ड ला स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत साहित्य में एमए की डिग्री विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की, आपने एलएलएम की डिग्री भी लखनऊ विश्व विद्यालय से प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की थी। विधि में पीएचडी की डिग्री कैम्ब्रिज से प्राप्त की। आपको लखनऊ विश्विद्यालय से समाज सेवा में चक्रवर्ती स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ था। इन्होंने लखनऊ विश्विद्यालय तथा कैम्ब्रिज में विधि का अध्यापन कार्य भी किया। कैम्ब्रिज में रहते समय आप टैगोर सोसायटी तथा कैम्ब्रिज मजलिस के कोषाध्यक्ष रहे। आपने लिंकोन इन से बैरिस्टर एट ला की डिग्री ली। आपको वहां पर मानद बेंचर तथा मास्टर चुना गया था। आप फित्ज़विल्यम कॉलेज के मानद फैलो रहे। कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय ने आपको मानद डॉक्टर ऑफ़ ला की डिग्री दे कर सम्मानित किया। 

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