
सरकार पर हर साल हजारों करोड़ रुपए का बोझ बढ़ रहा है। राज्य को हर महीने वेतन, पेंशन और ब्याज की अदायगी के लिए जितनी रकम चाहिए उसकी आधी रकम भी प्रदेश में राजस्व वसूली से प्राप्त नहीं हो रही है।
केंद्र सरकार से जिस दिन उत्तर प्रदेश को ओवर ड्राफ्ट मिलना बंद हो जाएगा, उस दिन प्रदेश सरकार के सामने अपने कर्मचारियों को वेतन देने की भी समस्या पैदा हो जाएगी। प्रदेश की नौकरशाही राज्य पर बोझ बन चुकी है और राजनीतिक लोकतंत्र का तब तक कोई मतलब नहीं होता जब तक उसमें आर्थिक लोकतंत्र को स्थापित करने की क्षमता न हो।
बिगड़ती कानून व्यवस्था, बिजली-पानी का संकट, प्राथमिक शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की बदहाली को सुधारने की कोई इच्छाशक्ति प्रदेश के राजनेताओं में दिखाई नहीं दे रही है। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार अगर आम जनजीवन के हितों को केंद्र में रख कर काम नहीं करती तो केवल वादों, नारों और दोषारोपण से प्रदेश को नहीं चलाया जा सकता है। राजनीतिक दलों ने प्रदेश को जिस तरह जातियों और धर्मों में खंडित-विखंडित किया है, उसकी मिसाल खोजनी मुश्किल है। उससे समूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही प्रदेश की जनता का विश्वास उठता जा रहा है। उत्तर प्रदेश को आर्थिक बदहाली के इस मुकाम पर हमारे राजनेताओं ने ही पहुंचाया है। यहां के युवक रोजी-रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में भटकते रहते हैं।राहुल गाँधी ने इस विषय को लेकर एक लम्बा भाषण भी दिया था। इस तरह के भाषणों का बाज़ार बन गया है उत्तर प्रदेश।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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