ग्वालियर आर्मी के सामने समर्पण करना पड़ा था इटली की तानाशाही सेना को

Bhopal Samachar
ग्वालियर। भले ही इतिहास के पन्नों से इसे मिटा दिया गया हो परंतु ग्वालियर आर्मी के जाबाजों की कहानियां किसी सुपर हीरो की कहानियों से कम नहीं हैं। यह कड़वा सच है ग्वालियर आर्मी से अंग्रेजी सैना भी खौफ खाती थी। इसलिए जब सारा देश गुलाम हुआ करता था, ग्वालियर के साथ अंग्रेजों ने संधी की थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इटली के तानाशाह मुसोलिनी की सेनाएं जबर्दस्त कहर बरपा रहीं थीं। दुश्मन के फौजियों की लाशें बिछाने में मुसोलिन की सेनाओं को मजा आ रहा था। इसी बीच उनका सामना ग्वालियर आर्मी से हुआ। ग्वालियर आर्मी के जांबाजों ने कुछ इस तरह का हमला किया मुसोलिन की सेना को घुटने टेकने पड़े। 

1942 में सैकेंड वर्ल्ड वार के दौरान ग्वालियर आर्मी के सैनिकों को कमांडर व्हीबी जोशी की कमान में अबीसीनिया में मोर्चे पर तैनात किया गया था। मुसोलिनी की सेना के एक दस्ते ने इस टुकड़ी के सामने हथियारों समेत समर्पण कर दिया था। ग्वालियर आर्मी ने उनके तमाम हथियार जब्त कर लिए थे। इन्हीं हथियारों में थी 1934 में बनी 9 MM बरेटा पिस्टल। जिसे बाद में जगदीश गोयल ने खरीदा और इसी पिस्टल से नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की थी। 

इंदिरा गांधी और राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बीच हुए एतिहासिक विवाद के चलते इंदिरा गांधी ने ग्वालियर का गौरवशाली इतिहास नष्ट करवा दिया था। सुभद्रा कुमार चौहान की मनगढ़ंत कविता 'खूब लड़ी मर्दानी' को पाठ्यक्रम में शामिल करवाया गया और ग्वालियर नरेश को गद्दार करार दिया गया। इतना ही नहीं गांधी की हत्या के लिए भी सिंधिया को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई। कहा गया कि जिस पिस्लौत से गांधी की हत्या हुई वो सिंधिया की थी। जबकि ऐसा नहीं था। वो पिस्लौत इटली की सेनाओं से छीनी गई थी और बाद में बेच दी गई थी। भारतीय इतिहास में इसका जिक्र नहीं है, लेकिन इंग्लेड, इटली और दूसरे कई देशों के इतिहास में ये पन्ने आज भी सुरक्षित हैं। 

गोडसे ने ग्वालियर से ही क्यों खरीदी पिस्तौल
महात्मा गांधी की हत्या की कोशिश 20 जनवरी 1948 की गई। इसमें नाकाम रहने के बाद नाथूराम गोडसे ग्वालियर आ गया और एक अच्छे हथियार की तलाश शुरू की। गोडसे ने ग्वालियर में हिंदू संगठन से जुड़े डॉ. डीएस परचुरे का सहयोग लिया। दोनों ने मिलकर पिस्टल की तलाश शुरू कर दी। ग्वालियर से पिस्टल खरीदने की वजह यह थी कि सिंधिया रियासत में हथियार के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती थी। डॉ. परचुरे की कोशिश सफल हुई और उनके दोस्त गंगाधर दंडवते ने जगदीश गोयल से 500 रुपए में एक पिस्टल खरीद ली।
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