
इसके पहले संयुक्त राष्ट्र में जब पाकिस्तानी प्रतिनिधि मलीहा लोदी ने वानी की मौत के मद्देनजर कश्मीर में मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन की बात की तो हमारे प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने पाकिस्तान को याद दिलाया कि संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल कई खूंखार आतंकवादियों को पनाह देने वाले और आतंक को अपनी विदेश नीति का औजार बनाने वाले पाकिस्तान को कब से मानवाधिकारों की चिंता होने लगी। उन्होंने वाजिब ही कहा कि पाकिस्तान को दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। चिंता की बात यह है कि नवाज की अगुआई वाली पाकिस्तानी सरकार ने ही नहीं, पाकिस्तान के फौजी हुक्मरान जनरल रहील शरीफ ने भी ऐसी प्रतिक्रिया जताई है। जमात उद दावा का हाफिज सईद तो चेतावनी ही दे रहा है कि कश्मीर में आतंकी वारदात तेज होंगी।
पाकिस्तान सरकार, फौज और भारत विरोधी आतंकी तत्वों की भाषा एक हो गई है। भारत सरकार का यह अंदाजा गलत था कि नवाज शरीफ का रवैया अमन बहाली और विवादास्पद मसलों को छोड़कर बातचीत को आगे बढ़ाने का है। यह सोच हाल में पाकिस्तान में फौजी ठिकानों पर आतंकी हमलों और शायद अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान के फौजी हुक्मरानों में प्रभावी हो गई थी। इससे हाफिज सईद जैसे तत्वों को कुछ कम शह मिल रही थी लेकिन पिछले कुछ समय से खासकर पठानकोट हमले के बाद से यह सोच बदलने लगी बताया जाता है कि पनामा पेपर्स लीक के बाद उभरे आरोपों से नवाज भी कुछ कमजोर पड़े हैं लेकिन घाटी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से तीनों के सुर एक हो गए हैं। यह खतरे की घंटी है। खासकर सर्दियों में बर्फ गिरने के पहले घुसपैठ की आशंका बढ़ गई है। पाकिस्तान चाहेगा कि घाटी में वही मंजर फिर लौटा लाया जाए, जैसे बीती सदी के नौंवे दशक के शुरुआती वर्षो में दिखा था। इसलिए हमें हर मोच्रे पर बेहद मुस्तैद हो जाने की दरकार है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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