मप्र में कौन खा रहा है कुपोषितों का पोषण आहार

भोपाल। प्रदेश में कुपोषण खत्म करने के लिए बीते छह साल में 2000 करोड़ रूपए फूंक दिए गए, पर ये समस्या खत्म होने के बजाय और विकराल हो गई। कम वजन वाले बच्चों की तादाद दोगुनी हो गई। 68 हजार से ज्यादा अति कुपोषित हो गए। 

ये चौंकाने वाले आंकड़े वर्ष 2007 से 2013 तक केंद्र और राज्य एकीकृत बाल विकास परियोजना के पूरक पोषण आहार कार्यक्रम की हकीकत बयां करते हैं। कार्यक्रम के छह साल के आंकड़ों की पड़ताल में सामने आया कि प्रदेश में 15 लाख बच्चे कुपोषित हैं। करीब सवा लाख मासूम मौत के मुहाने पर हैं। ताजा स्थिति ने प्रदेश के माथे पर लगा कुपोषण का कलंक और गहरा दिया है। जमीनी हकीकत बताती है कि कुपोषण इसलिए बढ़ा, क्योंकि यहां पोषण आहार बनाने से लेकर बांटने तक की पूरी प्रक्रिया भ्रष्ट तंत्र और माफिया के कब्जे में है। 

एशियाई मानव अधिकार आयोग ले चुका संज्ञान 
श्योपुर में बीते साल अगस्त-सितम्बर में 23 मासूमों ने कुपोषण से दम तोडा था। घटना से आहत एशियाई मानवाधिकार आयोग ने आपत्ति जताते हुए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कड़ा पत्र लिखा था। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने दौरा भी किया था, लेकिन नौनिहालों की सेहत के लिए सरकार प्रभावी कदम नहीं उठा पाई। 

06 साल में 68 हजार अति कुपोषित बढ़े
कें द्र और राज्य एकीकृत बाल विकास परियोजना के पूरक पोषण आहार कार्यक्रम में 6 माह से 3 साल के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए सालाना लगभग 400 करोड़ रूपए खर्च किया जाता है, लेकिन वजनदार कोई दूसरा हो रहा है। प्रदेश में अभी 1.19 लाख बच्चे अति कुपोषित हैं। वर्ष 2007 में 6.79 लाख वजन किया गया था। इनमें से करीब 50 हजार बच्चे अति कुपोषित मिले थे। जबकि 2013 में 6.98 लाख बच्चों का वजन किया गया। इनमें अति कुपोषित 1.19 लाख मिले। यानी 68 हजार से ज्यादा बच्चे अति कुपोषित निकले।

व्यवस्था पर ठेकेदार हावी 
सरकार के उपक्रम एमपी स्टेट एग्रो के पास पोषण आहार की जिम्मेदारी थी। इसके बाद वर्ष 2005-06 में एग्रो कॉपोर्रेशन ने संयुक्त उपक्रम से दो कंपनियों (ठेकेदार) को ठेका दे दिया, जो आहार सप्लाई करती हैं।
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