
द वीक और हंसा रिसर्च द्वारा 2016 का सर्वे बताता है की मध्यप्रदेश की दशा कितनी गंभीर है।देश के 50 कला महाविद्यालयों में दिल्ली का लेडी श्रीराम कालेज सर्व प्रथम है और उसके बाद 50 में देश का हर प्रांत का नम्बर है, मध्यप्रदेश छोड़कर। यही हाल कामर्स कॉलेजों में है, देश के 50 में मध्यप्रदेश कहीं भी नहीं है। विज्ञान की शिक्षा में भी मध्यप्रदेश का 50 की सूची में कहीं अतापता नहीं है।
इंजीनियरिंग कालेजो के सर्वे में भी पहले 50 में मध्यप्रदेश का कहीं स्थान नहीं है। इंजीनियरिंग के निजी क्षेत्र में खुले कालेज जैसे तैसे चल रहे हैं। इस सूची को और अधिक विस्तार से देखने और 75 वें पायदान पर मध्यप्रदेश के भोपाल के एक निजी कालेज का नम्बर आता है। इस कालेज के भी अन्य संकाय के प्रवेश प्रश्न चिन्ह की जद में रहे हैं।
संचार माध्यम के कालेजों में भी देश के पहले दस में मध्यप्रदेश नहीं है। चिकित्सा शिक्षा के मामले में मध्यप्रदेश के शासकीय और निजी कालेजों का दूर दूर तक पता नहीं है। डेन्टल कालेजों के नाम पर मध्यप्रदेश में सरकारी क्षेत्र में एक और निजी क्षेत्र में अनेक कालेज हैं पर प्रावीण्यता की सूचि में मध्यप्रदेश का नाम नदारद है। विधि के मामले में नेशनल ला वि वि भोपाल ने मध्यप्रदेश की लाज रख ली है, यह पहले दस की सूची में है। इसका संचालन केंद्र के नियमों से होता है।
दृश्य साफ़ है की व्यापम का प्रभाव और गुणवत्ता की कमी मध्यप्रदेश को इस क्षेत्र के निचले पायदान पर ले गया है। शासन की रूचि के सवाल का जवाब उच्च शिक्षा मंत्री के पास हो सकता है, वे जब स्कूल शिक्षा के व्यवसाय से जुड़े थे तो अपना संस्थान सर्व प्रथम रखना उनकी प्राथमिकता होती थी, अब प्रदेश के बारे में उन्हें कुछ करना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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