
सरकार को यह भी पता है जिस दिन प्रदेश का अध्यापक एकजुट हो गया तो फिर उसकी समस्याओं का निदान होने में 24 घण्टे भी नही लगेंगे। प्रदेश सरकार और राजनितिक दल अध्यापकों के आसरे एक बहुत बड़ा वोट बैंक देख रहे है। सबका यही सोचना है कि जब तक अध्यापकों की समस्याएं रहेगी तब तक सत्ता स्वार्थ के समीकरण इनके आसरे कायम रहेगे। इसलिए कोई भी सरकार एकदम से एक ही बार में अध्यापको की मांगो का निराकरण नही कर रही है। पिछले दो दशक में देखा जाये तो राजनेताओ ने अपने तुच्छ स्वार्थ के चलते अध्यापकों में आपसी कलह और गुटबाज़ी करवाकर अध्यापकों का भला करने की बजाय अपना ही स्वार्थ ज्यादा सिद्ध किया है।
सिर्फ छटा वेतनमान मिल जाने से कोई अध्यापकों की लड़ाई खत्म नही होने वाली है बल्कि अभी तो बड़ी बड़ी समस्याओ जेसे शिक्षा विभाग में सविलियन, नियमित पेंशन और रिटायरमेंट के बाद अपने हक का पैसे लेने तक के लिए हमे सरकार से लड़ना होगा। अगर ऐसे ही कलह और गुटबाज़ी के हालात रहे तो हजारो संग़ठन और नेताओ के बनाने के बाद भी अध्यापकों की समस्याएं जस की तस ही रहेगी ?
मोजूदा परिदृश्य में अध्यापकों के पास मुरलीधर पाटीदार को छोड़ कोई भी ऐसा नेता है नही जो मुख्यमंत्रीजी से चाहे जब सीधे मिल कर संवाद कर अध्यापकों की मांगो का निराकरण करवा सकता हो। इस सत्य को सभी अध्यापक और अध्यापकों के नेता भली भाँति जानते हैं किन्तु स्वार्थ की चाह में स्वीकारते नही हैं। जब तक इस सत्य को हम सभी एक स्वर में स्वीकारेंगे नही तब तक सरकार से समाधान की आस रखना भी बेमानी लगती हे।
मुरलीधर पाटीदार को गाली देने से या आपस में ही लड़ने से कुछ भी हासिल नही होगा। पाटीदार का लोहा सरकार और विपक्ष भी मानती है इसलिए तो आज विधायक बनने के बाद अकेले मुरलीधर ने अध्यापक हित में इतने प्रश्न अपनी सरकार के मंत्रियो से पूछे हैं कि दो दशक के अध्यापको के इतिहास में नही पूछे गए है। आज भी सरकार और उसके मुख्यमंत्री मुरली को विधायक बन जाने के बाद भी अध्यापको के नेता के रूप में ही ज्यादा देखती है। अतः प्रदेश के अध्यापको को अध्यापक हित में मुरलीधर पाटीदार के विधायक बनने का उनकी शक्ति का फायदा उठाकर उनके नेतृत्त्व में सरकार से अपना आर्थिक भला करवाना चाहिए।
- यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं, भोपाल समाचार के संपादकीय मंडल का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।