हरिद्वार। महात्मा गांधी ने कहा था गंगा भारतीय सभ्यता की जननी है। उसके किनारों ने सभ्यताओं को जन्म दिया है। देश की जनसंख्या का 37 प्रतिशत गंगा बेसिन के किनारे निवास करता है लेकिन सच्चाई यह भी है कि हर रोज हम इस पवित्र नदी को दूषित करने में जुटे हुए हैं। महानगर हरिद्वार का पूरा सामाजिक व आर्थिक आधार भी पूरी तरह गंगा पर टिका हुआ है। लेकिन ऋषिकेश से मचलती, उछलती, कलकल करती गंगा जब इस हरि के द्वार में प्रवेश करती है तो उस पर ताबड़तोड़ मानवीय हमले होते हैं।
गंगा पर काम करने वाले प्रमुख पर्यावरणविद् गुरुकुल कांगड़ी के प्रोफेसर बीडी जोशी के मुताबिक जबरदस्त इकोलजिकल फ्लो के बावजूद जल की गुणवत्ता प्रभावित करने वाला बायोलजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) हर रोज प्रभावित हो रहा है। बीओडी प्रभावित होने का प्रमुख कारण नगरीय प्रदूषण और सीवेज है। एक अध्ययन के मुताबिक केवल हरिद्वार में ही 3766 मिलियन लीटर सीवेज बिना उपचारित किए सीधे गंगा में गिर रहा है।
गंगा हरिद्वार और ऋिषिकेश जैसे शहरों में आचमन करने लायक नहीं रही है। इतने भारी-भरकम बजट से गंगा की स्वच्छता पर फिर से सवाल खड़े हो रहे हैं। गंगा किनारे बने रिजोर्ट और होटल, धर्मशालाओं को एनजीटी ने कई बार अपने संस्थानो व व्यवसायिक केन्द्रो के सीवेज को शोधन के लिए नोटिस थमा दिया परन्तु अब तक ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। गंगा में तो सीवेज जा ही रहा है।