
जब भाजपा के वकील अदालत में बड़ी सहजता से फ्लोर टेस्टिंग पर सहमत हो गए तब भी कई राजनैतिक पंडित यह निष्कर्ष दे रहे थे कि लगता है भाजपा ने बहुमत जुटा लिया है, पर जब भाजपा के विधायक सदन में वोट देकर निकले तो उन्होंने ही हरीश रावत की जीत की खबर का इशारा किया था | उत्तराखंड की राजनीति में एक नया पड़ाव आ चुका है|यह सिर्फ इस पहाड़ी राज्य ही क्यों, मुल्क की अभी की राजनीति में भी एक पड़ाव आने की उम्मीद करनी चाहिए.
भाजपा के कुछ प्रमुख कर्ता-धर्ता कांग्रेस मुक्त भारत के अपने नारे की जो व्याख्या अरुणाचल के बाद उत्तराखंड में सरकार बदलवाकर कर रहे थे और हिमाचल तथा दूसरी कांग्रेसी सरकारों पर भी हमले शुरू हो चुके थे, उम्मीद करनी चाहिए कि यह शक्ति परीक्षा उसका अंत हो गया | केंद्र-राज्य संबंधों की जो व्याख्या धारा 355 और 356 के जरिए हुई है और उसमें छूटी अस्पष्टता के चलते इनका जो दुरुपयोग होता था उसका अंत सरकारिया आयोग की रिपोर्ट और केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकारों के गठन के साथ ही हो गया लगता था.जो धुंधलका था उसे अदालती फैसलों ने साफ कर दिया कि केंद्र या राज्यपाल का अधिकार क्षेत्र क्या है, राज्य सरकार की सीमा क्या है, विधान सभा अध्यक्ष की सीमा क्या है और बहुमत-अल्पमत का फैसला किसे करना है? भाजपा की मौजूदा मुहिम के बाद इन बातों पर भी शक होने लगा था. पर लगता है और उम्मीद करनी चाहिए कि विभिन्न प्रावधानों की मनमानी व्याख्या का खेल अब यहीं रुक जाएगा|
हमारे संविधान निर्माताओं को 355-356 की कमजोरियों का एहसास था पर उन्हें लगता था कि हमारे जन प्रतिनिधि, संवैधानिक पदों पर बैठे लोग सामान्य मर्यादाओं का पालन करते हुए कोई गड़बड़ नहीं करेंगे. पर केंद्र सरकारों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों और विधान सभा अध्यक्षों के साथ विधायकों ने क्या-क्या कलाकारी दिखाई है और किस-किस मर्यादा का उल्लंघन किया है; यह सब जाना हुआ किस्सा है और हर दल के लोग इसमें शामिल हैं|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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