
इसके अलावा कोई महिला कर्मचारी कंपनी में पांच साल नौकरी कर चुकी हैं तो घर में बच्चों और बुजुर्गों की सेवा के लिए भी वह एक साल की छुट्टी ले सकती है, जिस दौरान उसे आधी सैलरी भी दी जाएगी। साथ ही कंपनी ने बच्चा गोद लेने वाली महिला कर्मचारियों को 6 महीने की अडॉप्शन लीव और 6 महीने की सरोगेसी लीव के साथ-साथ पुरुषों के लिए 15 दिन की पैटर्निटी लीव का भी प्रावधान किया है.
कामकाजी महिला और प्रेगनेंसी
मौजूदा समय में ऐसी एचआर पॉलिसी देश की किसी कंपनी में नहीं दी जा रही है। आमतौर पर प्रेगनेंसी लीव के नाम पर ज्यादातर कंपनियां तीन महीने की छुट्टी देती है। वहीं पोस्ट डेलिवरी लीव का प्रावधान ज्यादातर भारतीय कंपनियों के लिए पूरी तरह से अजूबा है। खास बात यह है कि पोस्ट प्रेगनेंसी चुनौतियों के चलते लगभग 48 फीसदी महिलाएं नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर रहती है।
आमतौर पर ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए महिला कर्मचारियों के पास नौकरी गंवाने से बचने के लिए महज लीव विदाउट सैलरी का विकल्प रहता है। इस विकल्प में महिलाओं पर दोहरी मार पड़ती है। पहला, आमदनी का जरिया बंद हो जाता है और दूसरा दोबारा नौकरी ज्वाइन करने पर शुरुआत उसी स्तर से करनी पड़ती है जिस स्तर से छुट्टी ली गई थी, यानी सीनियॉरिटी गंवानी पड़ती है।
टाटा सन्स ने इसे महिला कर्मचारियों के साथ अन्याय करार देते हुए उन्हें 18 महीनों की पोस्ट डेलिवरी लीव देने का प्रावधान किया है जिस दौरान उन्हें सीटीसी का 50 फीसदी हिस्सा दिया जाएगा। साथ ही वापस नौकरी ज्वाइन करने पर उसकी सीनियॉरिटी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कंपनी ने यह प्रावधान इस मान्यता के साथ किया है कि ऑफिस के काम के अलावा महिलाओं पर परिवार में बच्चों की परवरिश और बुजुर्गों की सेवा की अतिरिक्त जिम्मेदारी रहती है। टाटा सन्स की यह पॉलिसी दुनियाभर में कामकाजी महिलाओं को दी जा रही एचआर पॉलिसी का सघन अध्ययन करने के बाद तैयार की गई है।
अब बस इंतजार इस बात का है कि कब देश की बाकी कंपनियां अपने कर्मचारियों को ऐसा ऑफर देती है क्योंकि इस नीति पर टाटा सन्स का अपवाद बना रहना भी ठीक नहीं। देश की सभी महिला कर्मचारियों को हफ्ते में चार शनिवार का बेसब्री से इंतजार है।