राकेश दुबे@प्रतिदिन। वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए ईपीएफ पर 8.8 फीसदी अंतरिम ब्याज दर की ट्रस्टी बोर्ड की सिफारिश को खारिज कर केवल 8.7 फीसदी ब्याज दर की अनुमति दी है। आम कर्मचारी और श्रमिक संगठन इसे लेकर खासा नाराज हैं। शायद यह पहला मौका है, जब वित्त मंत्रालय ने ईपीएफओ ट्रस्टी बोर्ड और श्रम मंत्री की ब्याज दर संबंधी सिफारिश को नकार दिया है। यूँ तो ईपीएफओ एक स्वतंत्र व स्वायत्त संगठन है। इसके ट्रस्टी बोर्ड ने सितंबर, 2015 के आकलन के आधार पर कहा था कि अगर वह 2015-16 के लिए अपने सदस्यों को 8.95 फीसदी ब्याज दर भी देता है, तो भी उसके कोष में 100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि बची रहेगी, 8.8 प्रतिशत ब्याज के बाद भी उसके कोष में 673 करोड़ रुपये अधिक बचेंगे।
यह ब्याज दर कई आधार पर न्यायसंगत है। कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी के अधिकतम कार्यशील वर्षों में अपनी सेवाएं किसी संगठन को देता है और इस दौरान अपनी कमाई का कुछ हिस्सा वह ईपीएफ में इसलिए जमा कराता है, ताकि रिटायरमेंट के बाद निश्चिंत रह सके।जब सरकार खुले बाजार में छोटे निवेशकों की दीर्घकालीन जमा राशि की भरोसेमंद वापसी की गारंटी नहीं दे पाती और सेवानिवृत्ति के बाद भी किसी पारिवारिक जिम्मेदारी के निर्वाह के लिए उसे कोई विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा योजना नहीं देती है, तो कर्मचारियों को 8.8 फीसदी दर पर ब्याज देना पड़े, तो यह सरकार का न्यूनतम सामाजिक दायित्व है। वैसे भी, देश में बचत की प्रवृत्ति घटने से सामाजिक सुरक्षा की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। ईपीएफ सामाजिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण माध्यम है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगोंके लिए सामाजिक सुरक्षा एक बड़ा प्रश्न जरूर है।
जिस तरह ईपीएफ पर ब्याज दर घटाने का प्रस्ताव किया है, इसी तरह से केंद्र सरकार द्वारा दूसरी छोटी बचत योजनाओं पर एक अप्रैल से ब्याज दर घटाए जाने से देश में सामाजिक सुरक्षा की चिंताएं और बढ़ गई हैं। पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) और किसान विकास पत्र समेत सभी 11 छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरें 1.3 प्रतिशत तक घटा दी गई हैं। पता नहीं छोटी बचत वालों के कैसे दिन आ गए हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com