
शुक्रवार को प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस अनुराग कुमार श्रीवास्तव की युगलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता होशंगाबाद निवासी समाजसेवी कैलाश तिवारी की ओर से अधिवक्ता हरेकृष्ण उपाध्याय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि ऐसी कई शिकायतें सामने आई हैं, जिनमें वेयर हाउस के नाम पर बेहद प्रतिकूल माहौल वाले बड़े कमरों की व्यवस्था की गई है। इस वजह से धरतीपुत्रों की मेहनत से उपजी फसल बर्बाद होने और शासकीय कोष को भारी नुकसान पहुंचने की आशंका बढ़ जाती है। हर साल इसी वजह से अनाज की काफी बर्बादी होती है।
स्टोन या सीमेंट की ईंटों से निर्माण जरूरी
बहस के दौरान कहा गया कि कायदे से वेयर हाउस का निर्माण सीमेंट या पत्थर की ईंटों से ही किया जाना चाहिए। इसके बावजूद नाममात्र के ही वेयरहाउस विधिवत बने हैं। बाकी के वेयरहाउस का हाल-बेहाल है। सवाल उठता है कि जो वेयर हाउस मूलभूत नियम-निर्देश की कसौटी पर खरे नहीं उतरते उन्हें भला लाइसेंस कैसे मिल जाता है? सीधा गणित यही कि मैदानी निरीक्षण के स्थान पर महज कागजी खानापूर्ति कर संचालन की एनओसी दे दी जाती है। इस सिलसिले में केन्द्र व राज्य के सक्षम प्राधिकारी कठघरे में रखे जाने योग्य हैं।