
9 मई 2012 को दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर मुरैना पुलिस ने धोखाधड़ी के मामले में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रघुराज कंषाना के भाई संजीव सिंह को गिरफ्तार किया था और उसे कोतवाली थाने में बंद कर दिया था। इसके बाद रघुराज कंषाना अपने समर्थकों के साथ थाने पहुंचे और पुलिस कर्मियों के साथ मारपीट की और हथियार छीन लिए। साथ ही लॉकअप में बंद संजीव सिंह को छुड़ा ले गए।
इस मामले में पुलिस ने लूट, डकैती सहित अन्य धाराओं में रघुराज कंषाना, रामवीर सिंह, केशव सिंह गुर्जर, राजवीर सिंह, लालू, हनी अलियास, कौशल कंषाना, बंटी पाठक, संजीव सिंह को आरोपी बनाया था। केस दर्ज होने के बाद एफआईआर को समाप्त कराने के लिए आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में बताया गया कि संजीव सिंह को पुलिस सिविल ड्रेस में पकड़कर ले गई थी। जब उसे पकड़कर ले गए तो लगा कि उसका अपहरण हुआ है। इसके चलते लोग तलाशते हुए थाने पहुंच गए।
याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध करते हुए शासकीय अधिवक्ता बीके शर्मा ने कोर्ट को बताया कि संजीव सिंह थाने में बंद था। आरोपियों को पता था कि संजीव थाने में बंद है, तो उसके अपहरण का तो सवाल ही नहीं उठता है। सुनियोजित तरीके से वारदात की गई। इससे कानून व्यवस्था भी बिगड़ी थी। पुलिस के हथियार भी लूटे थे। इसलिए इनकी जांच खत्म कर चालान पेश करना है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद वर्ष 2012 में दिया स्थगन आदेश वापस ले लिया। इस स्टे के समाप्त होने से आरोपियों की गिरफ्तारी का रास्ता साफ हो गया है।
चर्चित रहा है मामला
वर्ष 2012 में कोतवाली थाने पर हुआ हमला काफी चर्चित रहा है। करीब 50 लोगों ने पुलिस वालों पर जानलेवा हमला किया था, जिसकी वजह से पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए थे और मुश्किल से अपनी जान बचाई थी। वर्ष 2012 से लेकर अब तक इस केस की जांच पुलिस नहीं कर पाई है। जिसको लेकर हाईकोर्ट ने नाराजगी भी व्यक्त की है।