
सत्ताविरोधी रुझान की बातो को एक तरफ रखते हुए मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तेलंगाना और त्रिपुरा की एक-एक सीट पाकर क्रमश: भाजपा, शिवसेना, अकाली दल, टीआरएस और माकपा ने प्रमाणित किया है कि जनाधार उनके साथ है | जीत के उत्साह और पराजय की निराशा से परे जाकर इन नतीजों के विश्लेषण की जरूरत है। उत्तर प्रदेश में संवेदनशील मानी जा रही मुजफ्फरनगर सीट से जीत को भाजपा २०१७ में होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणामों का संकेतक मान कर चल रही है, तो गलती कर रही है । तो उसके पडौस से लगी देवबंद सीट पर कांग्रेस की जीत का संदेश अलहदा है |
बिहार का उपचुनाव परिणाम सियासी पंडितों के लिए भी चौंकाऊ रहा है, क्योंकि करीब तीन महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज करने वाले सत्तारूढ़ महागठबंधन को हरलाखी सीट पर राजग उम्मीदवार से पराजय का स्वाद चखना पड़ा है। इसके साथ ही पांच राज्यों में सत्तारूढ़ दलों की जीत को उनकी सरकारों के कामकाज पर मतदाताओं की मंजूरी की मुहर मान लेना अति सरलीकरण के साथ ही चुनावी समीकरणों से निकले संदेश की अनदेखी करना है। कौन नहीं जानता कि आज भी तमाम प्रयासों के बावजूद हमारे देश में चुनाव धनबल-बाहुबल से अछूते नहीं हैं। उम्मीदवारों के चयन तक में तकरीबन सभी दल जातीय और सांप्रदायिक गणित को तरजीह देते हैं। दल बदलू उम्मीदवारी को मिले वोट भी इस बात का संकेत है की सब कुछ ठीक नहीं हो रहा है |
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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