
अगर हैदराबाद विश्वविद्यालय में एबीवीपी से जुड़े छात्रों को कुछ मुद्दों पर शिकायत थी, तो उनके समाधान के लोकतांत्रिक तरीके निकाले जा सकते थे। पर उसके बजाय केंद्रीय सत्ता से शिकायत की गई, जिसके जवाब में विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया गया। गौरतलब है कि एबीवीपी एक बहुत पुराना छात्र संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1949 में हुआ था | यह बेहद प्रभावशाली छात्र संगठनों में से है। वस्तुतः शिक्षा परिसरों में राजनीतिक लड़ाइयां खुद ही लड़ी जाती हैं, लेकिन भाजपा के केंद्र की सत्ता में आने के बाद यह उसकी मदद से मजबूत होना चाहता है। बेशक ऐसा सिर्फ एबीवीपी के साथ ही नहीं है, छात्र राजनीति अब सत्ता राजनीति का ही विस्तार हो चुकी है। पर यह भी सच है कि खुली विचारधारा का विरोधी होने के कारण जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय में पूरी तरह वर्चस्व हासिल करना एबीवीपी के लिए अब तक कठिन रहा है। बेहतर होता कि जेएनयू में पैठ बना चुकने के बाद एबीवीपी अपने दम पर आगे बढ़ती।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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